Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 120
________________ ११८ जैनहितैषी ३ नवनीत । हिन्दीका मासिक पत्र है । इसे बनारसकी ग्रन्थप्रकाशक समिति निकालती है। दूसरे वर्षकी तीसरी संख्या हमारे सामने है । इसमें यूरोपके वर्तमान युद्ध के सम्बन्धकी सभी जानने योग्य बातें लिखी गई हैं जो बड़े परिश्रमसे संग्रह की गई हैं । इस युद्धके विषयमें जिन्हें कुछ जानना हो, वे इस अंकको अवश्य ही आद्यन्त पाठ कर जायें । इस अंकमें एक १०पेजके उपन्यासको छोड़कर शेष ७०पेज युद्धकी ही बातोंसे भरे हुए हैं । वार्षिक मूल्य २।और एक अंकका मूल्य ।। है। ४ वैष्णवसर्वस्व । यह वैष्णवोंके निम्बार्क सम्प्रदायका मासिक पत्र है। हाल ही निकला है। प्रकाशक, श्रीछबीलेलाल गोस्वामी, सुदर्शन प्रेस वृन्दावन । वार्षिक मूल्य दो रुपया । जो महाशय इस सम्प्रदायके सम्बन्धमें कुछ जानना चाहें वे इसे अवश्य मँगावें। __५ स्वामी-शिष्यसंवाद । इसमें स्वामी विवेकानन्द और उनके शिष्यके बीचमें जो वार्तालाप हुए थे वें लिखे गये हैं । गुजरातीमें स्वर्गीय भग्गूभाई फतेहचन्द जी ( सम्पादक जैन ) ने इसका अनुवाद किया था। मेसर्स मेघजी हीरजी कम्पनी, पायधूनी, बम्बई इसके प्रकाशक हैं । श्रीयुत मेघजी भाईने अपने विवाहके समय अपने इष्टमित्रोंमें वितरण करनेके लिए यह पुस्तक छपाई थी। बड़ी ही अच्छी पुस्तक है । धार्मिक राष्ट्रीय भावोंसे सराबोर है । हमने इसके प्रारंभके दो लेख पढ़े, पर हमें उनमें कोई बात ऐसी न मालूम हुई जो जैनधर्मके विरुद्ध हो। हमारी समझमें यह प्रत्येक भारतवासीके पढ़ने और मनन करनेके योग्य पुस्तक है। जैनभाईयोंके द्वारा इसप्रकारके सार्वजनिक विचारोंका प्रचार होना बहुत ही आशाजनक है। ६ दिगम्बरजैनका खास अंक । पिछले वर्षों की नाई इस वर्ष भी दिगम्बरजैनका दीपमालिकाका विशाल अंक खूब ठाटवाटसे निकला है । सब मिलाकर. ५० चित्र हैं ; एक चित्र रंगीन हैं । लेख भी पहलेके ही समान अँगेरजी, संस्कृत, प्राकृत, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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