Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 119
________________ पुस्तक-परिचय। ११७ wwwww पुस्तक-परिचय । १ स्वप्नवासवदत्तम् । स्वीसन्से पहले 'भास' नामके एक कवि हो गये हैं। वे महाकवि कालिदाससे भी पहले हुए हैं । कालिदासादिने अपने ग्रन्थोंमें उनका स्मरण किया है। अभीतक उनका कोई भी ग्रन्थ प्राप्य नहीं था; परन्तु - अब त्रावणकोरके प्राचीन पुस्तकालयमें उनके एक साथ तेरह ग्रन्थ मिल गये हैं और उनमेंसे १० ग्रन्थ उक्त राज्यने उत्तम रीतिसे सम्पादन कराके प्रकाशित भी करा दिये हैं । ये तेरहों ग्रन्थ नाटक हैं और संस्कृत साहित्यके प्रशंसनीय रत्न हैं । हर्षका विषय है कि पं० बाबूलाल मयाशंकर दुबे, राजनांदगांव ( सी. पी. ) ने उक्त नाटकोंमेंसे इस एक नाटकका हिन्दी गद्यपद्यमय अनुवाद भी प्रकाशित कर दिया और इस तरह उनकी कृपासे अब हिन्दीभाषाभाषी भी भासकी कृतिका कुछ परिचय पा सकेंगे। अनुवाद साधारणतः अच्छा हुआ है। भूमिकामें भासके सम्बन्धकी बहुतसी जानने योग्य बातें लिखी गई हैं। प्रारंभमें भासके नाटकोंकी संस्कृतसूक्तियोंका जो संग्रह किया गया है वह बहुत अच्छा है। हिन्दीभाषियोंके उपकारके लिए उनका अर्थ भी लिखदेना चाहिए था । पुस्तकका मूल छह आना है । २ कार्यविवरण पहला और दूसरा भाग। कलकत्तेके तृतीय हिन्दी साहित्यसम्मेलनका विवरण दो भागोंमें प्रकाशित हुआ है । पहले भागमें सभापति महाशयका विशाल व्याख्यान और दूसरे कामोंका क्रमबद्ध वर्णन है। दूसरे भागमें उन लेखोंका संग्रह है जो सम्मेलनमें पढ़े गये थे अथवा पढ़नेके लिए आये थे। इनमें कई अच्छे अच्छे विद्वानोंके लिखे हुए हैं। हिन्दीहितैषी मात्रको ये विवरण पढ़ना चाहिए । इनसे बहुत ज्ञान प्राप्त होगा और हिन्दीकी वर्तमान अवस्था पर विचार करनेमें सुभीता होगा। बहुत करके ये हिन्दीसाहित्यसम्मेलन कार्यालय इलाहाबादसे मिल सकेंगे । मूल्य मालूम नहीं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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