Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 118
________________ ११६ जैनहितैषी भरे हुए विचारसे—इस स्वावलम्बनकी भावनासे उन्हें कैवल्य प्राप्त हो गया और देवदुन्दुभी बज उठे ! " तुम अपने पैरों पर खड़े रहना सीखो; तुम्हें कोई दूसरा सामाजिक, राजकीय या आत्मिक मोक्ष नहीं दे सकता, तुम्हारा हरतरहका मोक्ष तुम्हारे ही हाथमें है।" यह महामंत्र महावीर भगवान् अपने शिष्य गौतमको शब्दोंसे नहीं किन्तु बिना कहे सिखला गये और इसी लिए उन्होंने गौतमको बाहर भेज दिया था। समाजसुधारकोंको, देशभक्तों और आत्ममोक्षके अभिलाषियोंको यह मंत्र अपने प्रत्येक रक्तबिन्दुके साथ प्रवाहित करना चाहिए। महावीर भगवान्के उपदेशोंका विस्तृत विवरण करनेके लिए महीनों चाहिए। उन्होंने प्रत्येक विषयका प्रत्यक्ष और परोक्षरीतिसे विवेचन किया है । उनके उपदेशोंका संग्रह उनके बहुत पीछे देवर्धिगणिने-जो उनके २७ वें पट्टमें हुए हैं-किया है और उसमें भी देशकाल और लोगोंकी शक्ति वगैरहका विचार करके कितनी ही तात्त्विक बातों पर स्थूल अलंकारोंकी पोशाक चढ़ा दी है जिससे इस समय उनका गुप्त भाव अथवा Mysticism समझनेवाले पुरुष बहुत ही थोड़े हैं । इन गुप्त भावोंका प्रकाश उसी समय होगा जब कुशाग्रबुद्धिवाले और आत्मिक आनन्दके अभिलाषी सैकड़ों विद्वान् सायन्स, मानसशास्त्र, दर्शनशास्त्र आदिकी सहायतासे जैनशास्त्रोंका अभ्यास करेंगे और उनके छुपे हुए तत्त्वोंकी खोज करेंगे । जैनधर्म किसी एक वर्ण या किसी एक देशका धर्म नहीं; किन्तु सारी दुनियाके सारे लोगोंके लिए स्पष्ट किये हुए सत्यों का संग्रह है । जिस समय देशविदेशोंके स्वतंत्र विचारशाली पुरुषोंके मस्तक इसकी ओर लगेंगे, उसी समय इस पवित्र जैनधर्मकी जो इसके जन्मसिद्ध ठेकेदार बने हुए लोगोंके हाथसे मिट्टी पलीद हो रही है वह बन्द होगी और तभी यह विश्वका धर्म बनेगा। (प्रार्थनासमाज-बम्बईके वार्षिकोत्सवके समय दिया हुआ श्रीयुत वाडीलाल मोतीलाल शाहका संक्षिप्त व्याख्यान । ) -जैनकान्फरेंस हेरल्ड, अंक १०-११-१२ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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