Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 128
________________ १२६ जैनहितैषी आवश्यक प्रार्थना। जैनहितैषीके पाठकोंको यह बतलानेकी जरूरत नहीं है कि यह पत्र जैनसमाजकी और जैनसाहित्यकी कितनी सेवा कर रहा है और इसका प्रचार अधिकता. के साथ होनेकी कितनी आवश्यकता है। इस सालका उपहार तो ग्राहकोंके हाथमें मौजूद ही है। इसे देखकर यह भी मालूम किया जा सकता है कि जैनहितैषीका वास्तविक उद्देश्य क्या है ? यह जैनसमाजकी भलाई के लिए निकलता है या कमाईके लिए । यदि पाठकोंकी समझमें हितैषीसे वास्तवमें ही समाजका कुछ हित होता हो तो हम उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे इस समय इसके कुछ ग्राहक बढ़ानेका प्रयत्न अवश्य करें । आपलोग यदि थोड़ी सी भी कोशिश करेंगे तो सहज ही इसके दोसौ चारसौ ग्राहक बढ़ जावेंगे। इस सालके साधारणोपयोगी उपहार ग्रन्थोंका जुदा मूल्य डाँकखर्चसहित २) है। इस लिए जैनहितैषी केवल १२ पैसोंमें मिलेगा जो कि १२ अंकोंके डाँकखर्च में ही लग जावेंगे। ये ग्रन्थ जिस किसीको भी बतलाये जावेंगे वही थोडीसी प्रेरणा करनेपर ग्राहक बननेको तैयार हो जायगा । केवल जैनी ही नहीं, इन ग्रन्थरत्नोंके मोहसे अजैनी भी ग्राहक बन जावेंगे । इस लिए पाठकोंसे बारबार प्रार्थना है कि वे इस वर्ष ग्राहक बढ़ानेकी काशिश जरूर करें। इस वर्ष लड़ाईके कारण कागज और छपाईका भाव बहुत बढ़ गया है इसलिए ग्राहकोंकी संख्या यथेष्ट न होगी तो हमें बहुत घाटा उठाना पड़ेगा। __ ग्राहक जितने ही अधिक होंगे, पत्रकी पृष्ठ संख्या हम उतनी ही आधिक बढ़ानेका प्रबन्ध करेंगे। ग्राहकसंख्या बढ़े बिना कोई भी पत्र तरक्की नहीं कर सकता। इस वर्ष हमें कोई भी महाशय जनहितैषीको मुफ्तमें या आधे पौने मूल्यमें मँगानेके लिए लाचार न करें। जिन संस्थाओंमें हितैषी विनामूल्य जाता है उनके संचालकों और विद्यार्थियोंसे खास तौरसे प्रार्थना है कि वे परिश्रम करके हमें इस वर्ष कुछ ग्राहक जुटा देनेकी कृपा करें। ___मैनेजर, जैनहितैषी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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