Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 97
________________ विविध प्रसंग। न भूलें । यह सबसे प्रार्थना है कि जहाँ कहीं किसीको यह जान पड़े कि इस फण्डसे सहायता मिलनी चाहिए वह नीचे लिखे पतेपर पूरा हाल लिखकर सूचित करें चेतनदास बी. ए., सहारणपुर । ३ जैकोबीका अन्तिम व्याख्यान । श्वे०जैन-कान्फरस-हेरल्डमें डा० जैकोबीका अन्तिम व्याख्यान अँगरेजीमें प्रकाशित हुआ है। उसमें कई बातें जानने । योग्य हैं । पट्टणके भंडारमें ग्रन्थोंका निरीक्षण करते समय उन्हें अकस्मात् एक ग्रन्थ हाथ लग गया । यह · अपभ्रंश भाषा' का है और धनपालका बनाया हुआ है । अब तक इससे पहले अपभ्रंश-भाषाका कोई भी ग्रन्थ न मिला था । इसके बाद उन्हें राजकोटमें एक — नेमिनाथचरित' भी मिला जिसका कुछ भाग अपभ्रंश भाषामें लिखा हुआ है। इन दो ग्रन्थोंके मिल जानेसे साहित्य-संसारमें एक नई चर्चा शुरू हो जायगी । डा० जैकोबी इन ग्रन्थोंको अपने साथ ले गये हैं। वे इन्हें बहुत जल्दी अपभ्रंश भाषाके व्याकरणसहित प्रकाशित करेंगे । यहाँ कई विद्वानोंके पास उनके पत्र आये हैं जिनमें उन्होंने अपभ्रंश भाषाके ग्रन्थोंके विषयमें बहुत कुछ पूछताछ की है । बस अब उन्हें अपभ्रंश भाषाकी धुन सवार हो गई है । इन यूरोपियन विद्वानोंमें यह . बड़ा गुण है कि हर चीज़की खूब ही खोज करते हैं और उसके लिए बड़ा परिश्रम करते हैं। दूसरी वात व्याख्यानमें यह कही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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