Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 101
________________ विविध प्रसंग। ~ अपनी अड़ोस पड़ोसकी दूसरी बहनोंको भी वे पुस्तकें पढ़नेके लिए देती थी। उनकी मृत्युसे बाबू साहबके हृदय पर गहरी चोट लगी है। बाबू साहबने उनकी स्मृतिमें २५ रु० की जैनधर्मकी पुस्तकें वितरण करके उनके एक प्रारे कार्यका सम्पादन किया है। ६ चन्द्रगुप्तका जैनत्व । प्रसिद्ध इतिहासज्ञ मि० विन्सेंट ए. स्मिथने अपने बहुमूल्य ग्रन्थ * भारतवर्षका प्राचीन इतिहास' का तीसरा संस्करण संशोधन करके प्रकाशित किया है । इसमें उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्यके जैन होने और राजपाट छोड़कर जैनमुनि हो जानेकी ‘संभावना':को स्वीकार किया है। शायद आगामी अन्वेषणोंमें वे इस बातको बिलकुल सत्य स्वीकार कर लें। -संशोधक। ७ शाकटायनके विषयमें खोज । प्रो० पाठकने इंडियन एंटिक्वेरीमें एक लेख प्रकाशित करवाया है जिसमें उन्होंने जैन-शाकटायनको महाराज अमोघवर्षका समकालीन बतलाया है । इस विषयमें उन्होंने कई प्रमाण भी दिये हैं। अमोघवृत्ति नामक टीका स्वयं शाकटायनकी ही बनाई हुई है। उसे उन्होंने महाराज अमोघवर्षके नाम स्मरणार्थ बनाया था । शाकटायनके विषयमें उनका विश्वास है कि वे श्वेताम्बरी थे । विद्वानोंको उक्त लेख पर विचार करना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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