________________
विविध प्रसंग |
९५
हमें बढ़ाते ही जाना चाहिए साथ ही सर्वसाधारणजनोंकी शिक्षाके कार्यमें भी हमें हाथ बँटाना चाहिए। सबसे पहले तो हमें यह चाहिए कि जहाँ जहाँ हमारी निजी संस्थायें हैं वहाँ यदि अन्य लोगोंके पढ़ने लिखनेका कुछ प्रबन्ध नहीं है - कोई अन्य स्कूल पाठशाला नहीं है तो अपनी पाठशालामें ही औरोंके लिखाने पढ़ानेका प्रबन्ध कर देना चाहिए । यदि अन्य विद्यार्थी हमारी धर्मशिक्षा लेना पसन्द न करें तो उन्हें केवल लिखना पढ़ना सिखलाने का ही प्रबन्ध कर देना चाहिए । जहाँ हमारी रात्रिकालमें लगनेवाली पाठशालायें हैं वहाँ अडोस-पड़ोसके उन जैनेतर लड़के-लड़कियोंको लिखना पढ़ना सिखलानेका इन्तजाम कर देना चाहिए जो दिन भर काम धंदा या मज़दूरी करके अपने माबापोंकी सहायता करते हैं और इस कारण दिनके स्कूलोंमें पढ़ने नहीं जा सकते हैं । इस तरहके प्रयत्नोंसे हमारा दूसरोंके साथ प्रेमभाव बढ़ेगा और हमारे अल्प व्यय और परिश्रमसे ही दूसरोंको बहुत लाभ पहुँचेगा । इसके बाद जिन स्थानोंमें हमारी संख्या थोड़ी हो और दूसरोंकी भी शक्ति पाठशालायें स्थापित करनेकी न हो वहाँ हमें उनके साथ मिलकर साधारण लिखना पढ़ना सिखलाने योग्य पाठशालायें खोलकर अपना और उनका हित करना चाहिए । जहाँ कोई पाठशालादि स्थापित करनेका प्रबन्ध बिलकुल न हो सकता हो वहाँ हमें चाहिए कि यदि हम थोड़ा बहुत जितना कुछ पढ़े-लिखे हैं वही अपने अड़ोस - पडोसके १०-५ लड़कोंको घंटे आधघंटे के लिए एकट्ठा करके पढ़ा दिया करें । शिक्षित व्यक्ति मात्रको प्रत्येक निरक्षर बालक-बालिका,
I
७
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org