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जैनहितैषी -
खानेसे उत्पन्न हुए रोगोंको मिटानेका इलाज है । एक पूर्ण उपवास करनेके बाद शरीर अपने आप ही अपने वास्तविक वजनकी प्राप्ति कर लेता है । "
मि. सिंकलरका स्वानुभव |
अमेरिकाके प्रसिद्ध डाक्टर मि. सिंकलर लिखते हैं कि- “ मेरा प्राकृतिक सुदृढ़ शरीर अनियमित आहारसे निर्बल हो गया था। मैं न कभी मदिरापान करता था, न सिगरेट पीता था और न कभी चाय या काफ़ी ही पीता था । मैं एक कट्टर वैजीटेरियन ( शाकफल–अन्नभोजी ) था । किन्तु बहुत खानेसे और समय पर न खानेसे मुझे अजीर्ण (Dyspepsia ) का रोग हो गया और तब मेरे शरीरमें नाना भाँतिके रोग उत्पन्न होने लगे । अन्तमें ऐसी खराब हालत हुई कि मेरे लिए दुग्ध पचना भी कठिन हो गया । तब मैंने उपवासके द्वारा अपने रोगोंकी चिकित्सा करना प्रारम्भ किया । पहले चार दिनोंमें मेरी जो हालत रही उसको मैं यहाँ संक्षेपमें बतलाता हूँ ।
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" पहले दिन मुझे बहुत ही क्षुधा लगी, वह अप्राकृतिक अग्निके समान थी । इसे प्रत्येक अजीर्णसे पीडित मनुष्य पहचानता है। दूसरे दिन प्रातःकाल मुझे थोड़ीसी क्षुधा लगी और उसके बाद आश्चर्योत्पादक बात यह हुई कि मुझे क्षुधा ही न लगी । अन्नसे मुझे ऐसी नफरत हो गई कि जैसे कभी न खाई हुई वस्तुसे हो जाती है 1 “उपवासके पहले दो तीन सप्ताहसे मेरे सिरंमें पीड़ा रहती थी;
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