________________
महावीर स्वामीका निर्वाणसमय ।
समयमें यह विक्रमादित्यके नामसे प्रसिद्ध हुआ । सवस पहले सन् ८४२ ई० के धौलपुरके एक शिला-लेखमें इसका जिकर आया है। फिर धनपालने ‘पाझ्यलच्छी' में सन् ९७२ ई० में और अमितगतिने सुभाषितरत्नसंदोह में मन् ९९४ ई० में इस संवत्का उल्लेख किया है । तीसरे जिन राजघरानोंका इन गाथाओंमें जिकर किया है वे भी असम्बद्ध मालूम होते हैं । उनमें कोई सम्बंध नहीं पाया जाता । पालक अवंतिका राजा था. नंद. मौर्यवंशी, पुप्यमित्र, मगधके गजा थे। शक उत्तर पश्चिमीय हिंदुस्तानके विदेशी घरानेका था। गर्दभिल पश्चिमीय हिंदुस्तानमें राज करता था । प्रोफेसर जैकोबी इस विषयमें अपना संदेह पहले ही प्रगट कर चुके हैं । अवंसीके राना पालकको मगधाधिपतियामें कैसे मिला दिया ? इसका उन से क्या सम्बंध था ? इसी प्रकार बलमित्र, भानुमित्र, नहवहन ( नभोवाहन ) गर्दभिल और शक राजाओंके विषय और समयमें वडा संदेह मालूम होता है । अतएव जैनियोंकी यह राजाओंकी सूची जिम पर वे महावीर भगवानके निर्वाणका समय निश्चय करते हैं. ऐतिहामिक दृष्टिमे कुछ भी महत्त्व नहीं रखती । पालक गजाका, जिसके ६० वर्ष बताये गये हैं, महावरिमे कोई सम्बंध नहीं है और न वलमित्र. भानुमित्र. गर्दभिल्ल और शक गजाओंका कोई सम्बंध है । निःसंदेह २९३ वर्षतक मगधके राजघरानोंका शासन रहा । संभावना यह है कि मगधके राजाओंसे ही इस वीचके समयका प्रारम्भ होता है। विम्बिमार ( श्रेणिक ) और अजातशत्र ( कणिक ) का जैनधर्मसे वनिष्ट सम्बन्ध रहा है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org