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जैनहितैषी
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सेठ देवचन्द-लालचन्द-पुस्तकोदार फण्ड ।
यह बड़ी ही प्रसन्नताकी बात है कि जैनसाहित्यके प्रकाश करनेकी ओर जैनसमाजका ध्यान जा चुका है और उसके उद्योगसे दिन पर दिन आधिकाधिक ग्रन्थ प्रकाशित होते जाते हैं। इस विषयमें दिगम्बर सम्प्रदायकी अपेक्षा श्वेताम्बर सम्प्रदाय बहुत
आगे बढ़ गया है और यही कारण है कि आज साहित्यसेवियोंमें सबसे अधिक चर्चा श्वेताम्बर सम्प्रदायके ग्रन्थोंकी है। इस सम्प्रदायके अनुयायियोंने जो अनेक ग्रन्थप्रकाशिनी संस्थायें स्थापित की हैं उनमें ' सेठ देवचन्दलालचन्द पुस्तकोद्धार फंड,' विशेष उल्लेखयोग्य है । इसे सूरतके प्रसिद्ध जौहरी सेठ देवचन्दलालचन्दजी अपने मृत्युपत्रमें ४५ हजारका दान करके स्थापित कर गये हैं। आगे इस फंडमें सेठजीके पुत्र गुलाबचन्दजीने
और उनकी पुत्री श्रीमती जीवकोर बाईने पचीस पचीस हज़ार रुपया और भी दिये और इस तरह अब यह फंड लगभग एक लाख रुपयाका हो गया है । इसकी ओरसे श्वेताम्बरसम्प्रदायके संस्कृत, प्राकृत, गुजराती और अँगरेजी ग्रन्थ प्रकाशित किये जाते हैं। प्रत्येक ग्रन्थ लागतके या उससे भी कम मूल्य पर बेचा जाता है । साधु साध्वियों, असमर्थ श्रावकों, पाठशालाओं, मन्दिरों
और पुस्तकालयोंके लिए बिनामूल्य ग्रन्थ देनेकी भी व्यवस्था है। संस्था अच्छे ढंगसे चल रही है। उसकी देखरेख ६ टूस्टियोंके हाथमें हैं। रुपया विश्वस्त बैंकों तथा प्रामिसरी नोटोंमें सुरक्षित है। अब तक इसकी ओरसे २३ ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं जिन
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