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जैनहितैषी -
समाजोंने इसतरहकी कई संस्थायें खोली भी हैं; परन्तु ऐसी संस्थायें खोलना हँसी खेल नहीं है । इसके लिए बहुत बड़ी पूँजी और शिक्षाविज्ञानके अच्छे अच्छे विद्वान् संचालकोंकी आवश्यकतां है। ऐसी संस्थायें कोरे न्याय - व्याकरण - धर्मशास्त्र के पण्डितोंके भरोसे नहीं खोली जा सकती हैं । इसलिए जबतक हमारेपास ऐसी संस्थायें खोलने के साधन न हों तबतक छोटी छोटी स्वतंत्र संस्थायें न खोलकर सरकारी स्कूलोंसे ही लाभ उठाना चाहिए और धर्मशिक्षाका प्रबन्ध रात्रिकी पाठशालायें खोलकर कर देना चाहिए । आगे चलकर बाबू साहबने एक 'जैनशिक्षासमिति ' स्थापित करनेकी और ' महावीर जैनकालेज ' खोलनेकी आवश्यकता प्रकट की है । हमारी समझमें इन दोनों संस्थाओंकी जरूरत तो है; पर अभी इनके स्थापित होनेका - अच्छी तरह चल सकनेका समय नहीं आया है और इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि अभी तक हमारे शिक्षित भाइयोंका ध्यान इस ओर बहुत ही कम आकर्षित हुआ है । हमारे यहाँ काम करनेवालोंकी इतनी कमी है कि कालेज तो बहुत बड़ी बात है - एक हाईस्कूलका अच्छी तरह चला लेना भी बहुत कठिन जान पड़ता है । बम्बईका जैनहाईस्कूल इसका प्रमाण है । इसके बाद आपने जैनसमाजके जातिभेद और विशेष करके उपभेदोंको मिटादेनेकी चर्चा करके - बहुतसी कुरीतियोंको दूर करनेकी सूचना की है । समाजसुधारके प्रश्नका विचार करते हुए आपने जो नवयुवकोंको और पुराने विचारवालोंको सूचनायें की हैं वे बहुत महत्त्वकी हैं और उनसे आपकी दीर्घदृष्टिका परिचय
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