Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 77
________________ मालवा-प्रान्तिक सभाका वार्षिक अधिवेशन। ७५ की थी, या अबकी बार यह दूसरी भूल मालवा प्रान्तिकसभाने की है ! स्वागतकारिणी सभाके सभापतिका व्याख्यान । जो लोग जैनसमाजकी उन्नतिमें दत्तचित्त हैं और उसकी भलाईमें लग रहे हैं उनके लिए यह व्याख्यान मार्गदर्शकका काम देगा । इसमें प्रायः सभी आवश्यकीय बातोंकी चर्चा की गई है और सभी बातों पर अपने स्वतंत्र मन्तव्य प्रकट किये गये हैं। जैनसमाजकी उन्नतिका आदर्श क्या होना चाहिए, इस विषयमें वे कहते हैं:" जैनसमाजकी भावी उन्नतिका आदर्श भी अन्य जातियोंके समान यह होना चाहिए कि हमारी समाजरूपी इमारतके बनानेमें नीव हमारे प्राचीनकी हो, ‘स्टाइल हमारी हो, परन्तु मसाला जहाँ अच्छा मिले वहाँसे लाकर उसे अपनी आवश्यकताओंके अनुकूल बनाकर दीवालें तथा छतें उसीकी बनाई जावें । नकल कभी अच्छा नहीं होती, वह चाहे प्राचीन पूर्वकी हो या अर्वाचीन पश्चिमकी हो। मेरी सम्मतिमें हमें भली बातें ग्रहण करनेमें ज़रा भी संकोच न करना चाहिए, चाहे वे प्राचीनकालसे मिलें या वर्तमान कालसे-पूर्वसे मिलें या पश्चिमसे । उन भली बातोंको हमें अपने उपयुक्त बनाकर उन्हें ग्रहण करनी चाहिए । रीतियें-रस्में इत्यादि किसीकी सम्पत्ति नहीं होतीं, उन पर सब कौमोंका हक़ है । चाहे कोई कुछ करे, पर हमारी समाज वर्तमान कालके प्रभावसे नहीं बच सकती । औरोंने जो सामाजिक विकास सम्बन्धी शोध किये हैं उनसे हमें लाभ उठना चाहिए। इत्यादि ।" इन थोडीसी पंक्तियोंमें बहुत विचार करने योग्य बातें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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