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दुर्बुद्धि ।
थीं ! बारबार पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि उससे एकबार एक सिपाहीने आकर पूछा था कि 'तेरे पास कुछ रुपये हैं या नहीं' और इसके उत्तरमें उसने कह दिया था कि 'मैं बहुत ही गरीब हूँ, मेरे पास कुछ भी नहीं है । ' सिपाही तब यह कहकर चला गया था, 'तो कुछ नहीं हो सकता, यहीं पड़े रहना पड़ेगा। '
मैंने इस प्रकारके दृश्य सैकड़ों ही बार देखे थे, पर उनका मेरे चित्त पर कुछ भी असर नहीं पड़ा था, मगर उस दिन उस किपानकी दशा मुझसे नहीं देखी गई - मेरा हृदय विदीर्ण होने लगा | सावित्रीके करुणागद्गद् कण्ठका स्वर जहाँ तहाँसे "सुनाई पड़ने लगा और उस कन्यावियोगी वाक्यहीन किसानका अपरिमित दुःख मेरी छातीको चीरकर बाहर होने लगा ।
पी
।
दारोगा साहब बेतकी कुर्सी पर बैठे हुए आनन्दसे हुक्का रहे थे । उनके पूर्वोक्त सम्बन्धी महाशय भी वहीं बैठे हुए गप्पें हाँक रहे थे जो कि अपनी कन्याका विवाह मेरे साथ करना चाहते थे । वे इस समय इसी कामके लिए वहाँ पधारे थे । मैं झप - टता हुआ पहुँचा और दारोगा साहब से चिल्लाकर बोला- “आप मनुष्य हैं या राक्षस ? " इसके साथ ही मैंने अपने जीवनकी सारी कमाई के रुपयोंकी थैली उनके सामने पटक दी और कहा - "रुपया चाहिए तो ये ले लो, जब मरोगे तब इन्हें साथ ले जाना; परन्तु इस समय इस गरीबको छुट्टी दे दो, मैं इसकी कन्याका अन्तिम संस्कार
करा दूँ !
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