________________
जैनहितैषी
मेरी छाती फटने लगी। उसी समय बाहरसे मालगुज़ार साह बके नौकरोंके तकाजेका शब्द सुन पड़ा और मैं किसी तरह शोक संवरण करके बाहर निकल पड़ा।
नाव पर चढ़ते समय मैंने देखा कि थानेके घाट पर एक किसान लँगोटी लगाये हुए बैठा है और पानीमें भीग रहा है । पास ही एक छोटी सी डोंगी बँध रही है । मैंने पूछा- " क्यों रे, यहाँ पानीमें क्यों भीग रहा है ? " उत्तरसे मालूम हुआ कि कल रातको उसकी कन्याको साँपने काट खाया है, इस लिए पुलिस उसे रिपोर्ट लिखानेके लिए थानेमें घसीट लाई है। देखा कि उसने अपने शरीर एक मात्र वस्त्रसे कन्याका मृत शरीर ढक रक्खा है। इसी समर मालगुजारके जल्दवाज़ मल्लाहोंने नाव खोल दी। ___ कोई एक बजे मैं वापस आ गया । देखा कि तब भी वह किसान हाथ पैरोंको सिकोड़कर छातीसे चिपटाये बैठा है और पानीमें भीग रहा है। दारोगा साहबके दर्शनोंका सौभाग्य उसे तब भी प्राप्त नहीं हुआ था। मैंने घर जाकर रसोई बनाई और उसका कुछ भाग किसानके पास भेज दिया; परन्तु उसने उसका स्पर्श भी न किया। ___ जल्दी जल्दी आहारसे छुट्टी पाकर मैं मालगुजारके रोगीको देखनेके लिए फिर घरसे बाहर हुआ । संध्याको वापस आकर देखा तो उस किसानकी दशा खराब हो रही है। वह बातका उत्तर नहीं दे सकता, मुँहकी ओर टकटकी लगाकर देखने लगता है। उस समय नदी, गाँव, थाना, मेघाच्छन्न आकाश और कीचड़मय पृथ्वी आदि सब चीजें उसे स्वप्नके जैसी मालूम होती
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org