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जैनहितैषी
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यह असह्य अपवादकी चोट ! बेचारा बूढा अस्थिर हो उठा। बोलाआप डाक्टर भी हैं और दारोगा साहबके मित्र भी हैं, किर्स तरह मुझे बचाइए। - लक्ष्मीजीकी लीला विचित्र है । जब वे चाहती हैं तब इस तरह बिना ही बुलाई छप्पर फोड़कर आजाती हैं । मैंने गर्दन हिलाकर कहा- यह मामला तो बड़ा बेढब है !' और अपनी बातको प्रमाणित करनेके लिए दो चार कल्पित उदाहरण भी दे दिये । बूढा हरनाथ काँप उठा और बच्चेकी नाई रोने लगा।
अन्तमें मामला ठीक हो गया और हरनाथको अपने लडकीके शवसंस्कार करनेकी आज्ञा मिल गई।
उसी दिन शामको सावित्रीने मेरे पास आकर करुणापूर्ण स्वरसे पूछा-" पिताजी, आज वह बूढा ब्राह्मण तुम्हारे पैरों पड़कर क्यों रोता था ?" मैंने उसे धमकाकर कहा-" तुझे इन बातोंसे क्या मतलब है ! चल अपना काम कर !"
इस मामलेसे कन्यादान करनेका मार्ग साफ हो गया । लक्ष्मीजी बड़े अच्छे मौके पर प्रसन्न हुई। विवाहका दिन निश्चित हो गया। एक ही कन्या थी, इसलिए खूब तैयारियाँ की गई । घरमें कोई स्त्री नहीं थी, इस लिए पड़ोसियोंसे सहायता लेनी पड़ी । हरनाथ अपना सर्वस्व खो चुका था, तो भी मेरा उपकार मानता था और इसलिए इस काममें मुझे जी-जानसे सहायता देने लगा।
विवाहसमारंभ पूरा नहीं हो पाया । जिस दिन हल्दी चढाई गई उसी दिन रात्रिको तीन बजे सावित्रीको हैजा हो गया । बहुत
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