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महावीर स्वामीका निर्वाणसमय ।
साधारण पाठकोंकी दृष्टिमें यह कोई महत्त्वका विषय नहीं कि महावीर स्वामीका निर्वाण ४६७ वर्ष पूर्व हुआ या १२७ वर्ष पूर्व हुआ परन्तु विशेष पाठकों के लिए तथा जैनधर्मके इतिहासके लिए यह विषय बहुत ही महत्त्वका है । विद्वानों और इतिहासज्ञोंका कर्तव्य है कि वे उक्त विद्वान के दिये हुए प्रमाणों पर विचार करें और इस विषयकी अच्छी तरह जाँच पड़ताल करके अपना सम्वत् निश्चय करें | जैनधर्मके लिए यह विषय बहुत ही आवश्यक है, कारण कि इसी पर जैनधर्मके इतिहासका आधार है । जब तक इसका निर्णय नहीं होगा तब तक जैनइतिहासका लिखाजाना असंभव हैं ।
उक्त विद्वान्ने अपने विस्तृत लेखको तीन भागों में विभक्त किया हैं। हम यहाँ पर उसका सारांश मात्र दिये देते हैं। पहले भाग में आपने सन् १३०६ की बनी हुई मेरुतुंगाचार्यकृत विचारश्रेणी की उन गाथाओंको अयुक्त और असम्बद्ध दिखलाया है जिनमें महावीरनिर्वाण तथा विक्रमादित्य के राज्यारूढ़ होने के बीच के मुख्य मुख्य राजरानोंका उल्लेख किया गया है। वे गाथायें ये हैं:
जं रयणीं कालगओ, अरिहा तित्थंकरो महावीर । तं रयणी अवंतिवई, अहिसित्तो पालगो रण्णो ॥ १ ॥
अर्थात् -- जिस रात्रिको महावीर तीर्थकरका निर्वाण हुआ उसी रात्रिको अवन्तीके राजा पालकका राज्याभिषेक हुआ ।
सही पालगरणी पण्णावण्णलयं तु होइ नंदाण । असंय मुरियाणं, तीसं चित्र प्रसमित्तस्स ॥ २ ॥
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