Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ महावीर स्वामीका निर्वाणसमय अवश्य प्रकाशित करें कि जिससे इस विषयका अच्छी तरह निर्णय हो सके । हम पुनः बलपूर्वक कहते हैं कि जैनइतिहासके लिए गृह अत्यंत आवश्यक प्रश्न है । जब तक यह हल न होगा जैन-इतिहासका लिखा जाना असम्भव है । हम अपने विद्वान् जैनपण्डितों से यह भी निवेदन कर देना चाहते हैं कि लेखक महाशय अपने विचारोंको बदलनेके लिए तैयार हैं, यदि आप प्रबल युक्तियों द्वारा उनका खंडन कर सकें और अपना मंडन कर सके । वास्तवमें यह समय परीक्षाका है | इस समय केवल कहने से काम नहीं चलता | दिखलाने और सिद्ध करनेकी जरूरत है । हमें आशा है कि हमारे विज्ञ पाठक इस विषय पर विचार करेंगे और शीघ्र ही वीर भगवान् के निर्वाणसमयका निर्णय करेंगे। हम शोक इस बात का है कि हमारे जैनीभाई इन विपर्योकी ओर किंचित् भी ध्यान नहीं देते हैं । तत्त्वचर्चा करते समय तो वे शतांशों और सहस्राशतिक पहुँच जाते हैं और लोक, अलोक, असंख्यात, अनंत, कोडाकोडी सागरों और पल्योंकी बातें करते है, परंतु उन विषयोंका जिकर तक भी नहीं करते जिन पर जैनइतिहासका आधार है । क्या इससे अधिक और कोई शोक की बात होसकती है कि धर्मप्रवर्तक, तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामीका निर्वाणसमय भी अभीतक अनिश्चित है ? कितने जैनपंडिताने और ग्रेज्युएटोंने इस विषयका अध्ययन किया! कितनोंने इस पर लेखनी उठाई ? शोक! महाशोक ! कि हमारे कामको विदेशी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144