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जैनहितैषी
विक्रमसंवत् के बीच की गणना छोड़ देने से उत्पन्न हुआ मालूम होता है। बौद्ध लोग—लंका, श्याम, वर्मा आदि स्थान में बुद्धनिर्वाण के आज २४५८ वर्ष बीते मानते हैं। सो यहाँ मिलान खा गया कि महावीर, बुद्ध के पहले निर्वाण प्राप्त हुए | नहीं तो बौद्धगणना और · दिगंबर जैन ' गणना से अर्हन्त का अन्त बुद्ध-निर्वाण से १६-१७वर्ष पहले सिद्ध होगा जो पुराने सूत्रों की गवाही के विरुद्ध पड़ेगा।
( पाटलिपुत्रसे उद्धृत)
जिनाचार्यका निर्वाण
.. -उस का जातीय उत्सव- . कहु ईश्वर कहुं बनत अनीश्वर नाम अनेक परो।
सत् पन्थहिं प्रगटावन कारण लै सरूप विचरो॥ जैन धरम में प्रगट कियो तुम दया धर्म सगरो। 'हरीचन्द' तुमको बिनु पाए लरि लरि जगत मरो॥
जैन-कुतूहल । धर्मनायकोंके मत-प्रवर्तन का तत्त्व ऊपर के पद की आदि कड़ियों में हरिश्चन्द्र ने कहा है।
अहो तुम बहु विधि रूप धरो,
जब जब जैसो काम परै तब तैसो भेख करो। । जब जिस बात की आवश्यकता पड़ती है, मानवशक्ति अथवा उस शक्ति का प्रेरक एक नया रूप धर कर खड़ा होता है। हिन्द जाति की आत्मा ने ऐसे समय में जब कि इस देश का मुख्य भोजन मांस था आचार्य महावीर नाटपुत्र के रूप में अवतार ले
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