Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 29
________________ तपका रहस्य । २७ किन्तु उपवास करना प्रारम्भ करनेके दूसरे ही दिनसे वह पीड़ा मिट गई और फिर कभी न हुई। __ “दूसरे दिन मुझे बहुत ही निर्बलता जान पड़ी और उठते समय चक्कर आने लगे। तब मैं कहीं घरसे बाहर न जाकर छत पर धूपमें बैठ गया और तमाम दिन पढता रहा । इसी प्रकार तीसरे और चौथे दिन ऐसा मालूम हुआ कि मानों मेरा शरीर ही बेकाम हो गया है; परन्तु उसी समय ऐसा भी प्रतीत हुआ कि मेरी मानसिक शक्ति बढ़ रही है । पाँचवें दिनके बाद मुझमें शक्ति आने लगी और मजबूती जान पड़ने लगी। मैंने बहुत कुछ समय टहलकर बिताया, बादमें कुछ लिम्वना भी प्रारम्भ कर दिया । इस तपस्यामें मुझे जो सबसे अधिक अचरजकी बात मालूम हुई वह मनसम्बन्धी चपलताकी थी। क्योंकि मैं पहले जितना पढ़ने लिखनेका काम कर सकता था, उससे बहुत ज्यादा काम इन दिनोंमें कर सका था । "पहले चार दिनोंमें मेरा वजन साढे सात सेर कम हो गया; किन्तु पश्चात् उसका कारण विचारनेसे विदित हुआ कि मेरे शरीरके स्नायु भाग ( Tissues ) बहुत ही निर्बल स्थितिको प्राप्त हो गये थे, इसलिए मेरा वज़न इतना कम हो गया था। तत्पश्चात् आठ दिनोंमें केवल एक सेर ही कम हुआ जो कि मामूली कहा जा सकता है। उपवासके दिनोंमें मैं अच्छी तरह सोता था । प्रतिदिन दो पहरको मुझे निर्बलता मालूम होती थी; किन्तु पगचम्पी करवानेसे और शीतल जलमें स्नान करनेसे, फिर ताज़गी आजाती थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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