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जैनहितैषी
प्रचार होता है जिससे ज्ञानान्तरायकर्म क्षीण होता है और इस कारण ज्ञान प्राप्त करनेकी विशेष योग्यता प्राप्त होती है। __ यदि कोई यह कहे कि ज्ञान अमुक पुस्तकोंसे, या अमुक पुरुषोंसे ही ग्रहण करना चाहिए अन्यसे नहीं; तो उसे कभी मत मानो । इसी भाँति किसी लोकप्रिय सिद्धान्तके विरुद्ध विचार करनेवाले सिद्धान्तकी दलीलोंको सुननेके लिए भी कभी आनाकानी मत करो । हृदयको उदार बनाओ, आँखें खुली रक्खो, सारे संसारमें तुम्हारे घरके कूपके जलके अतिरिक्त अन्य किमी कूपसे उत्तम जल कभी प्राप्त ही नहीं हो सकता, ऐसी मूर्खताका परित्याग करके भिन्न भिन्न फिलासफरोंका सहवास करो, उनके विचारोंको सुनो, भाषाज्ञान प्राप्त करो, न्यायशास्त्र पढ़ो और बादमें इन दोनोंकी सहायतासे संसारका प्राचीन और अवचीन जितना भी ज्ञान प्राप्त कर सको, करो ।
(५) उक्त सब प्रकारके तपोंमे 'ध्यान तप' विशेष शक्तिशाली है। संसारिक विजयके हेतु और आत्मिक मुक्तिके लिए दोनों कामोंमें यह एक तीक्ष्ण औज़ार है । चित्तकी एकाग्रता अथवा ध्यानके द्वारा सब शक्तियाँ एक ही विषय पर एक साथ उपयोगमें आती हैं
और उससे ईप्सितार्थ प्राप्त करनेमें बहुत आसानी हो जाय यह . स्वाभाविक ही है । असाधारण विजेता नेपोलियनकी मनोवृत्तियोंकी एकाग्रता इतनी हद्दतक पहुँची हुई थी कि उसने सेनाओंके मध्यमें भी-जहाँ दनादन तो दगती थीं बैठकर राज्यकी कन्याशालाओंके नियम बनाये थे ! वह युद्धभूमिमें ही १० या १५ ,
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