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जैनहितैषी
या 'दर्द' है। कई प्रसंगोंमें तुम यों भी कह सकते हो कि रोग यह निर्बल जीवन शक्ति है, जीवनशक्ति ( जो शरीरमें है ) का घटना है, अथवा शरीरके काम करनेवाले कल पुरजोंमें कुछ खराबीका हो जाना है। यह मत समझो कि तुम पर किसी जातिके कीड़ोंने हमला किया है जिससे तुम्हें रोग होगया है अथवा कोई विचित्र जातिके सूक्ष्म जंतु तुम्हारी श्वासके साथ भीतर चले गये हैं। रोग प्रकट हुआ है, इसका कारण यह है कि तुम उसके लिए तैयार हुए हो, अथवा तुमने स्वयं वैसी हालत तैयार की है। बहुतसे उदाहरणोंमें रोगका कारण यह होता है कि तुमने प्राकृतिक नियमोंका भंग किया है । अर्थात् तुम प्रकृतिके नियमोंसे प्रतिकूल चले हो और उसके दण्डके रूपमें तुम रोगके पात्र हुए हो। तो भी स्मरण रक्खो कि रोग एक मित्रकी भाँति ही आता है, शत्रुकी भाँति नहीं। इस बातको तुम्हें अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि न यह रातको चुपचाप घरमें घुस आनेवाले चोरकी भाँति छुपकर आता है और न तुमको हैरान करनेके लिए आता है। यह तुम्हें लाभ पहुँचाने आता है; और बहुतसे उदाहरणोंसे प्रतीत होता है कि यह तुम्हारे स्थूल शरीरको साफ़ कर जाता है। __“ यद्यपि रोग ( दर्द ) एक ही है, किन्तु वह सैकड़ों मार्गोंसे आता है और उसके सहस्रों चिह्न दिखाई देते हैं। वैद्यलोग उन चिह्नोंको भिन्न भिन्न रोगोंके नामोंसे पहचानते हैं। मगर वे हैं सब एक ही रोगके परिणाम । अभ्याससे, व्यवहारोपयोगी रीतिसे, अथवा कुदरती उपायोंकी रातिसे, जो मनुष्य आरोग्यता
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