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तपका रहस्य।
पाकर उत्तेजित होजानेवाला मन कुछ संयमी बने । बारबार खानेकी आदतवालेको, खूब डटकर खानेवालेको, अपचकी और अस्थिर मनकी शिकायतें करनेवालेको ऊनोदर तप करना चाहिए, अर्थात् कुछ दिनोंके लिए भूखसे भी कम खानेका नियम ले लेना चाहिए, कुछ समय तक दिनमें केवल एक ही बार खाना चाहिए और बीड़ी, सुपारी, तम्बाकू आदि व्यसनोंसे भी नियमित समय तक पृथक् रहना चाहिए । ये सब बातें तपकी प्रारम्भिक अवस्थाकी हैं। इस भाँति शरीरकी असत् ( अस्वाभाविक ) क्षुधा, अथवा लालसाओंको अंकुशमें रखनेकी आदत पड़ जाती है और तब उपवासकी दूसरी सीढ़ी पर चढ़ना सुगम होता है। . पाश्चात्य विद्वानोंने, शरीरशास्त्रके ज्ञाताओंने, और अनुभवी पुरुषोंने उपवासके विषयमें बड़ी गहरी खोनें की हैं और भाँति भाँतिके प्रयोगों द्वारा कई सत्य सिद्धान्त स्थिर किये हैं । अतः हम भी इस विषयमें यहाँ प्राचीन ग्रन्थोंका हवाला न देकर, वर्तमान वैद्य-विद्या, और सायन्सके सिद्धान्तोंका उल्लेख करेंगे । बरनार मैक फेडन ( Bernarr Macfadden ) नामी अमेरिकन शोधक लिखता है:___“ शरीरमें लगातार उत्पन्न होनेवाले विषोंको-जो बहुत समय तक रहनेसे नानाप्रकारके रोगोंका रूप धारण कर प्रगट होते हैंनिकाल बाहिर करनेके लिए जितने उत्तम और रामबाण उपाय हैं उनमें सबसे अच्छा उपाय उपवास है। । . इसमें कुछ सन्देह नहीं कि प्रकृति रोगोंका इलाज करनेके
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