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गर्भाधान संस्कार विधि का मौलिक स्वरूप ...47 लोग दम्पत्ति को इसके लिए अनुपयुक्त समझें, तो उन्हें इसके लिए मना भी कर सकते हैं। यह समाज की धरोहर है, अत: विचारशील लोगों के द्वारा अपनी प्रजनन-प्रवृत्ति से समाज को सूचित करना गर्भाधान संस्कार है। विविध परिप्रेक्ष्यों में गर्भाधान संस्कार की आवश्यकता
यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि गर्भाधान संस्कार सम्पन्न करने का मूल कारण क्या रहा होगा? इस विषय में यदि गम्भीरता पूर्वक चिंतन करें तो निम्न तथ्य प्रकट होते हैं- पूर्वकाल में यह सामान्य मान्यता थी कि गर्भिणी को अमंगलकारी शक्तियाँ ग्रसित कर सकती हैं और जिसके कारण गर्भ को हानि पहुँच सकती है, अत: दुष्ट शक्तियों से बचाव करने के लिए यह संस्कार सम्पादित किया जाता हो। इसके साथ हम यह भी मान सकते हैं कि गर्भ को मंत्रोच्चार एवं विधि-विधानों द्वारा संस्कारित करने की दृष्टि से यह संस्कार किया जाता होगा।
व्यवहारतः प्रशिक्षण के लिए गर्भावस्था का काल सर्वाधिक महत्त्व का माना गया है। गर्भस्थ बालक को दिए गए संस्कार उसके लिए स्वभावगत बन जाते हैं। दूसरा कारण गर्भस्थ बालक बहुत ही संवेदनशील होता है, अत: उसको दिए गए संस्कार शीघ्र ही प्रभावी होते हैं। इस अपेक्षा को ध्यान में रखते हुए यह संस्कार किया जाता हो-ऐसा भी कह सकते हैं। वस्तुत: बालक के निर्माण की प्रक्रिया गर्भाधान से प्रारम्भ हो जाती है जैसे मकान निर्माण से पहले उसकी योजना बनाकर उसके लिए अपेक्षित उत्तम प्रकार की सामग्री का होना नितान्त आवश्यक है, उसी तरह ही उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए उसके उपादान रूप रज-वीर्य का उत्तम कोटि का होना नितान्त आवश्यक है। चरकसंहिता में उक्त बात को निम्न प्रकार से व्यक्त किया है 2.
जिस प्रकार अच्छा या बुरा बीज बोए जाने पर फल भी वैसा ही मिलता है जैसे- व्रीहि को बोने से व्रीहि और जौ को बोने से जौ उत्पन्न होता है, वैसे ही स्त्री-पुरुष का रज-वीर्य जैसा होगा, वैसी ही शुभाशुभ संतान की प्राप्ति होती है।
__गर्भाधान संस्कार बालक को सुयोग्य बनाने का संस्कार है, इसलिए यह संस्कार करते समय धर्म का भाव यथावत बना रहना चाहिए। साथ ही गर्भाधान की क्रिया के समय माता-पिता के मन का स्वस्थ एवं धर्मान्वित होना अत्यन्त