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118... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
हिन्दू परम्परा के गृह्यसूत्रों एवं स्मृतियों में प्रसव क्रिया होने के पूर्व की भी एक सुनिश्चित विधि का निरूपण है। हम उक्त वर्णन के आधार पर इतना निश्चित कह सकते हैं कि वैदिक परम्परा में भी शुचिकर्म संस्कार विधि का सम्यक् स्वरूप उल्लिखित है तथा यह विधि पूर्ण रूपेण वैज्ञानिक है। तुलनात्मक दृष्टि से शुचिकर्म संस्कार की महत्ता
यदि हम शुचिकर्म संस्कार विधि का तुलनात्मक दृष्टि से विवेचन करते हैं, तो इस संस्कार की मूल्यवत्ताएँ एवं विशिष्टताएँ प्रत्यक्षतः अवलोकित होती हैं। सामान्यतया जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा का यह महत्त्वपूर्ण संस्कार है तथा भारतीय दर्शन की सभी परम्पराओं में इस संस्कार के हेतु को युक्ति पूर्वक स्वीकारा गया है। यह संस्कार पवित्रता, स्वच्छता एवं शुद्धता से सम्बन्ध रखता है। विभिन्न दृष्टियों से इसका तुलनात्मक विवरण इस प्रकार अवलोकनीय है
नाम की दृष्टि से सामान्यतः श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक तीनों परम्पराओं ने शुचिकर्म क्रिया को स्वीकार किया है किन्तु इसे संस्कार के रूप में श्वेताम्बर - परम्परा ने ही मान्य किया है और इसका नाम शुचिकर्म संस्कार रखा है।
अधिकारी की दृष्टि से- श्वेताम्बर परम्परा में जैन ब्राह्मण को इस संस्कार का कर्त्ता बताया है । दिगम्बर परम्परा में इस संस्कार का कर्ता पति को माना गया है तथा वैदिक परम्परा में सूतक सम्बन्धी अशुद्धि को दूर करने का अधिकार ब्राह्मण को दिया गया है।
काल की दृष्टि से- श्वेताम्बर परम्परा में अपने - अपने कुल के अनुसार इस संस्कार का काल भिन्न-भिन्न बताया गया है। जैन आगमों में इस संस्कार को बारहवें दिन करने हेतु कहा गया है। दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा में सूतक का काल दस दिन माना गया है, परन्तु शुद्धि कर्म की क्रिया जातकर्म संस्कार के साथ-साथ प्रथम दिन ही कर ली जाती है।
मन्त्र की दृष्टि से - श्वेताम्बर परम्परा में शुचिकर्म संस्कार से सम्बन्धित किसी प्रकार के मन्त्र का उल्लेख नहीं हुआ है। दिगम्बर परम्परा में नाल गाढ़ने एवं स्नान करने विषयक दो प्रकार के मन्त्रों का निर्देश है। वैदिक परम्परा में भी सूतक क्रिया के समय कुछ मन्त्रों का प्रयोग अवश्य होता है किन्तु वे मन्त्र कौनसे हैं ? पढ़ने में नहीं आए हैं।