Book Title: Jain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 371
________________ अन्त्य संस्कार विधि का शास्त्रीय स्वरूप ...313 • आठ वर्ष से कुछ कम आयु वाले बालक का मरण होने पर तीन दिन का सूतक होता है सूतक काल पूर्ण होने पर प्रभु भक्ति निमित्त महोत्सव आदि और साधर्मिक वात्सल्य आदि करना चाहिए, ऐसा श्वेताम्बर आचार्य वर्धमानसूरि का अभिमत है।14 दिगम्बर मान्यतानुसार मृतक सूतक का काल इस प्रकार है • मृत्यु का सूतक पातक तीन पीढ़ी तक 12 दिन का, चौथी पीढ़ी में 6 दिन का, पाँचवीं-छठवीं पीढ़ी तक 4 दिन का, सातवीं में 3 दिन का और आठवीं में एक दिन-रात का माना जाता है। . • तीन दिन के बालक की मृत्यु होने पर एक दिन का और आठ वर्ष के बालक की मृत्यु होने पर तीन दिन का सूतक माना जाता है। • वर्तमान में सामान्यतया बारह दिन का सूतक रखते हैं, लेकिन दाह क्रिया के तीसरे दिन मन्दिर दर्शनार्थ जाते हैं और शान्तिपाठ करते हैं।15 यह मान्यता श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओ में समान है कि मृतक की देह क्रिया के अनन्तर दूसरे या तीसरे दिन सामान्य लोकाचार पूर्वक उठावना करके मन्दिर दर्शन के लिए जाते हैं और गुरु महाराज हों, तो उनके मुख से अथवा किसी धर्मिष्ठ व्यक्ति के मुखारविन्द से शान्तिस्तव का पाठ सुनते हैं। यह परम्परा कब, कैसे विकसित हुई? इसका स्पष्ट प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है। साथ ही 18वीं शती पर्यन्त के ग्रन्थों में भी यह स्वरूप देखा जाता है। इससे सुनिश्चित होता है कि यह परम्परा अर्वाचीन है, किन्तु धार्मिक दृष्टि से उचित प्रतीत होती है। अन्तिम आराधना की पारम्परिक विधि . मृत्यु के सन्निकट आने पर श्रावक को अनशन व्रत की आराधना करनी चाहिए। वह अनशन विधि इस प्रकार है आराधना स्थल- यह आराधना तीर्थंकर परमात्माओं के कल्याणक स्थानों में, जीव-जंतु रहित पवित्र भूमि में, जंगल में या अपने घर में करनी चाहिए।16 यदि ऐसा ज्ञात हो जाए कि मृत्यु अत्यन्त निकट है अथवा अवश्यंभावी है, तो संलेखना के लिए शुभ तिथि-वार-नक्षत्र आदि नहीं देखना चाहिए,

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