Book Title: Jain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 376
________________ 318...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन फिर शव के मस्तक को दक्षिण की ओर रखते हुए उस पर लिटा देते हैं। आजकल बाँस की अर्थी बनाई जाती है । मृगचर्म बिछाने की परम्परा विलुप्त हो चुकी है। शव को बिना रंग के अखंड एवं नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। 23 शव उठाना— कतिपय आचार्यों के अनुसार शव वयोवृद्ध दासों द्वारा ले जाया जाना चाहिए तथा कुछ के मतानुसार दो बैलों द्वारा ढोई जाने वाली गाड़ी पर लादकर ले जाना चाहिए | 24 स्मृतियों के अनुसार मृतक के सम्बन्धियों के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति को यह कार्य नहीं करना चाहिए। किसी विजातीय व्यक्ति को उसे स्पर्श करने से अशौच हो जाता है, जिसका निवारण प्रायश्चित से ही संभव माना है। इस बात का समर्थन श्वेताम्बर आचार्यों ने भी किया है। शवयात्रा— शवयात्रा का नेतृत्व साधारणतः मृतक का ज्येष्ठ पुत्र या शोकार्त का प्रमुख सम्बन्धी करता है । गृह्यसूत्रों के अनुसार दो वर्ष से अधिक आयु वाले सभी सम्बन्धी श्मशान यात्रा में जाते हैं । शवयात्रा में सम्मिलित होने वाले आयु क्रम के अनुसार चलते हैं। मार्ग में यम सूक्तों का पाठ किया जाता है। वर्तमान में 'राम नाम सत्य है' आदि वाक्यों को देहराया जाता है। 25 अनुस्तरणी - प्राचीनकाल में शवयात्रा एवं शव की अन्त्येष्टि के निमित्त एक विशेष प्रकार की गाय चुनी जाती थी । सूत्रकारों के अनुसार गाय की बलि दी जाती थी। यदि बलि के समय कोई घटना घट जाती, तो पशु मुक्त कर दिया जाता था। गाय को आमन्त्रित करने, मुक्त करने आदि की भी एक विशेष विधि होती थी। आजकल गाय का दान किया जाता है | 26 श्मशान विधि - श्मशान भूमि में विधिवत चुना हुआ स्थान शुद्ध किया जाता है। भूत-प्रेतों के निवारण की क्रिया की जाती है, प्रमाणोपेत गड्ढा खोदा जाता है तथा प्रमाणोपेत ही ईंधन, चिता आदि की क्रियाएँ करते हैं। के कुछ मतानुसार शव की कुक्षि तोड़कर, आंतड़ियों को घृत से भर देना चाहिए। इसके मूल में शव को शुद्ध करने और दाह को अधिक सुविधाजनक बनाने की भावना निहित थी। आजकल मृतक के केशों व नखों का कृन्तन और शव का प्रक्षालन शुद्धि के लिए पर्याप्त समझा जाता है। फिर शव चिता पर रखा जाता है। निज वर्णों के अनुसार शव के हाथ में स्वर्णपिण्ड, धनुष या मणि दी जाती है।27 चिता पर लेटना - पूर्ववर्ती वैदिक साहित्य में विधवा द्वारा मृतक पति के

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