Book Title: Jain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 380
________________ 322...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन के दिव्य तत्त्वों का इसमें समावेश हो जाए, तो सब कुछ अभिनन्दनीय बन सकता है। यह ताकत मानव मन एवं मानव शरीर में ही है। यही वजह हैं कि मानव के मृत शरीर को भी संस्कार का रूप दिया गया। दूसरी विशेषता यह है कि भारतीय-संस्कृति जितने हर्ष से सुख को स्वीकार करती है, उतने ही वेग से दुःख को भी स्वीकार करती है। वह सुख में दुःख व दुःख में सुख को ढूंढ लेती है। यही कारण है कि अन्त्येष्टि संस्कार, जिसे अन्य संस्कृति संसार के अशुभतम दिनों में से एक मानती है, वहाँ भारतीय संस्कृति इसे एक संस्कार के रूप में मानती ही नहीं, करती भी है। ___ जब यह संस्कार स्वयं महत्त्वपूर्ण है, तब संस्कार के प्रयोजन से किए जाने वाले विधि-विधान अवश्य ही अद्भुत गहराईयों को लिए हुए होने चाहिए। कुछ विधियों के महत्त्व एवं प्रयोजन इस प्रकार मननीय हैं अग्नि का संस्कार ही क्यों ? हिन्दु धर्म की सामान्य मान्यता है कि अग्नि की सहायता से जीव सद्गति की ओर प्रयाण करता है। वस्तु स्थिति भी यही है कि अग्नि का स्वभाव ऊर्ध्वगामिता है। उसकी लौ हमेशा ऊपर को ही उठती है। अग्नि को धार्मिक एवं पुण्यमय क्रियाओं के लिए भी उच्च व श्रेष्ठतर माना गया है। दूसरा कारण यह है कि ज्ञान, प्रकाश, तेज, संयम, पुरुषार्थ जैसे गुणों को अग्नि का प्रतिनिधि माना गया है अतः इसका आश्रय लेने वाले उसी तरह ऊपर की ओर उठते हैं, जिस तरह अग्नि में जलाए हुए शरीर के कणकण वायुभूत होकर आकाश में उड़ते चले जाते हैं। तीसरा कारण सिद्धान्ततः यह है कि हिन्दू-धर्म जीवन की निरन्तरता में विश्वास करता है, इसलिए मृत्यु को वह एक अर्द्धविराम मात्र मानता है, अवसान नहीं। इसे दूसरे जन्म में प्रवेश का द्वार मानता है, जीवन की समाप्ति नहीं। हाँ, उसे स्थूल शरीर की समाप्ति मानता है और मृत्यु के बाद वह स्थूल शरीर को अशुद्धि मानता है, उसे छूने में अपवित्रता का संसर्ग मानता है। अत: पंचतत्त्व से निर्मित शरीर को पंचतत्त्व में विलीन कर देना चाहिए, उनमें अग्नि पावक है, पवित्र करती है, अत: अग्नि को सौंपने से शरीर के तत्त्व अधिक शुद्ध रूप में वितरित होंगे इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु भी दाह-क्रिया की जाती है। धार्मिक मान्यता के आधार पर अग्नि संस्कार से जीव के सूक्ष्म शरीर पर चढ़े हुए इन्द्रियलिप्सा, वासना, मोह, द्वेष, आलस्य जैसे कुसंस्कार जल जाते

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