Book Title: Jain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 343
________________ विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप ... 285 समंजन- विवाह के पूर्व सात, नौ, ग्यारह या तेरह दिन वर एवं वधू के शरीर पर उबटन या सुगन्ध लगाना। प्रतिसरबन्ध- वधू के हाथ में कंगन बाँधना। वधू-वर निष्क्रमण - घर के अन्तः कक्ष से वर एवं वधू का मण्डप में आना। परस्पर समीक्षण- वर-वधू का एक दूसरे की ओर देखना। यह क्रिया विशिष्ट विधि पूर्वक होती है । कन्यादान — वर को कन्या प्रदान करना। यह कृत्य आज भी मौजूद है। अग्नि स्थापन एवं होम - विवाह लग्न के ठीक पूर्व अग्नि की स्थापना करना एवं अग्नि में आज्य की आहुतियाँ डालना। पाणिग्रहण - कन्या का हाथ पकड़ना अर्थात हथलेवा - विधि। देना। लाजहोम- कन्या द्वारा अग्नि में धान के लावा (खीलों) की आहुति देना। अग्निपरिणयन - वर द्वारा वधू को लेकर अग्नि एवं कलश की प्रदक्षिणा अश्मारोहण- वधू को पत्थर पर चढ़ाना। सप्तपदी - चावल की सात राशियों पर वर वधू द्वारा प्रत्येक पर सातसात पग चलना। मूर्धाभिषेक - वर-वधू के मस्तक पर जल छिड़कना । सूर्योदीक्षण - वधू को सूर्य की ओर देखने को कहना । हृदयस्पर्श - मन्त्र के साथ वधू के हृदय का स्पर्श करना । प्रेक्षकानुमन्त्रण - नवविवाहित दम्पति की ओर संकेत करके दर्शकों को सम्बोधित करना। दक्षिणादान - आचार्य को भेंट देना । गृहप्रवेश - वर के गृह में प्रवेश करना । ध्रुवारून्धती - दर्शन - विवाह के दिन कन्या को ध्रुव एवं अरुन्धती तारे की ओर देखने को कहना | आग्नेय-स्थालीपाक- अग्नि को पक्वान्न की आहुति देना । त्रिरात्रव्रत- विवाह के उपरान्त तीन रात्रियों तक कुछ नियमों का पालन करना।

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