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300...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन इस संस्कार के माध्यम से कामुक वृत्ति को रोका जा सकता है, चंचल मन को नियन्त्रित किया जा सकता है, सामाजिक अपराध वृत्तियों पर रोकथाम की जा सकती है तथा एक-दूसरे के प्रति समझौता और आत्म समर्पण की भावना को विकसित किया जा सकता है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस संस्कार की उपादेयता को देखें तो बलात्कार, अपहरण, लूटमार आदि बढ़ रही अपराधजनक एवं हिंसाजनक कुप्रवृत्तियों को रोका जा सकता है तथा मानसिक निर्मलता, चारित्रिक पवित्रता एवं पारिवारिक शुद्धता की स्थापना की जा सकती है। सन्दर्भ-सूची 1. षोडशसंस्कार, डॉ. बोधकुमार झा., पृ. 41 2. धर्मशास्त्र का इतिहास, भा.-1, पृ. 268 3. 'सद्वेद्यस्य चारित्रमोहस्य चोदयाद् विवहनं कन्यावरणं 'विवाह' इत्याख्यायते।
तत्त्वार्थराजवार्तिक, 7/28 की टीका पृ. 554 4. 'युक्तितो वरणविधानमग्निदेव द्विजसाक्षिकं च पाणिग्रहणं विवाहः'।
नीतिवाक्य, 3 5. संस्कार अंक, जनवरी 2006 पर आधारित, पृ. 115-116 6. विवाह, डॉ. सुदीप जैन, 7. सागारधर्मामृत, गा. 59 8. हिन्दूसंस्कार, पृ. 185 9. मनुस्मृति, 4/1-2 10. दक्षस्मृति, 1/12 11. हिन्दूसंस्कार, पृ. 198 12. लाइफ ऑव लिकर्गस, बान्स क्लासिकल लायब्रेरी, भा.-1, पृ.-81, उद्धृत -
हिन्दूसंस्कार, पृ. 199 13. (क) भगवती, अंगसुत्ताणि, 11/11/158
(ख) प्रश्नव्याकरण, अ.-2, सू.-13
(ग) राजप्रश्नीय, मधुकरमुनि, सू.-280 14. षोडशसंस्कार, डॉ. बोधकुमार झा. , पृ. 48 15. विवाह, पं. बलभद्र जैन, पृ. 9 16. षोडशसंस्कार, पृ. 43 17. वही, पृ. 44