Book Title: Jain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

Previous | Next

Page 353
________________ विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप 295 है। माँग भरना सौभाग्य या सुहाग का चिह्न माना गया है। वधू द्वारा वर से माँग भरवाने की क्रिया इस बात की घोषणा करती है कि हम दोनों ने स्वेच्छा पूर्वक एवं पूर्ण सहमति से विवाह किया है अतः आजीवन एक-दूसरे का साथ निभाने और पारिवारिक हित के लिए जो कुछ संभव है, वह सब कुछ करेंगे। अपनी आत्मा और परमात्मा के सामने सच्चे रहेंगे। पौंखना विधि का गूढ़ार्थ - यह वैवाहिक विधि मारवाड़ में अधिक प्रचलित है। जब दूल्हा शादी करने के लिए दुल्हन के द्वार पर पहुँचता है, उस समय दूल्हे की सास धूसर, मंथान, मूसल, हल और चरखे की त्राक से वर को पौंखती है अर्थात इन वस्तुओं को लाल वस्त्र में लपेटकर क्रमशः तीन बार वर के मस्तक पर फिराती हुई उतारती है। इस क्रिया के समय प्रयुक्त होने वाली पाँच वस्तुओं के भिन्न-भिन्न उद्देश्य हैं जैसे - धूसर गाड़ी दिखाती हुई सास दामाद को यह प्रेरणा देती है कि तुम विवाह के बाद इस दुनियाँ में बैल की तरह जुते रहोगे, विवाह करने में कोई लाभ नहीं है, अब भी संभल जाओ, मगर दूल्हा यह समझता है कि सास जो वस्तुएँ दिखा रही है, इनसे हमारे घर में इन चीजों के लाभ प्राप्त होते रहेंगे। जैसे- धूसर दिखलाने से वर यह मानता है कि हमारे घर गाड़ी-बैल चलते रहेंगे अर्थात घर में समृद्धि बनी रहेगी। मंथान बताती हुई सास यह संदेश देती है कि विवाह के बाद इस दुनियादारी के काम में दही व छाछ की तरह मथे जाओगे। मूसल दिखाने का मतलब यह है कि तुम अनाज की तरह कुटते रहोगे । हल दिखाने का यह तात्पर्य है कि तुम जमीन की तरह खेड़ाते रहोगे । चरखे की त्राक बताने का प्रयोजन यह है कि तुम मायाजाल से लिपटे रहोगे । इस प्रकार सास बड़ी होशियारी से दामाद को सचेत करती हैं, परन्तु वर मोहासक्त बना हुआ, मंथान का अर्थ समझता है कि हमारा घर दूध-दही से भरा रहेगा। मूसल देखकर यह जानता है - हमारे घर पर अनाज खूब कुटता रहेगा। हल द्वारा यह मालूम करता है - हमारे घर खेती-बाड़ी बहुत होगी और चरखे की त्राक देखकर यह सोचता है - हम इनकी कन्या के साथ स्नेह की डोर से सदैव बंधे रहेंगे अतः विवाह करना बेहतर है। 64 इस प्रकार अनेक विधिविधान विशिष्ट प्रतीकात्मक अर्थों को लिए हुए हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396