Book Title: Jain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 297
________________ विद्यारम्भ संस्कार विधि का रहस्यात्मक स्वरूप... 239 • उसके बाद गृहस्थ गुरु स्वर्ण तथा वस्त्र की दक्षिणा लेकर अपने घर की ओर प्रस्थान करे। • उसके बाद अध्यापक सबसे पहले मातृकाक्षर अर्थात वर्णमाला पढ़ाए। • तदनन्तर ब्राह्मण हो तो प्रथम आयुर्वेद, फिर षडंग और पुराण आदि धर्मशास्त्र पढ़ाएं। क्षत्रिय हो तो चौदह विद्या पढाएं, फिर आयुर्वेद, धनुर्वेद, दंडनीति और आजीविका - शास्त्र पढ़ाएं। वैश्य को धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, कामशास्त्र और अर्थशास्त्र पढ़ाएं। शूद्र को नीतिशास्त्र और आजीविका-शास्त्र पढ़ाएं। शिक्षा के पूर्ण होने के बाद साधुओं को आहार-वस्त्रपात्र और पुस्तक आदि का दान दें। 16 दिगम्बर - दिगम्बर परम्परा में इस संस्कार विधि का उल्लेख करते हुए यह कहा गया है कि सर्वप्रथम अपनी शक्ति के अनुसार जिनमन्दिर में या गृह पर जिनप्रतिमा की पूजा करें और कुशल गृहस्थ व्रती को ही उस बालक के लिए अध्यापक पद पर नियुक्त करें । वह अध्यापक सर्वप्रथम 'ॐ नमः सिद्धेभ्यः - यह मन्त्र बालक से वहीं पर लिखवाए और उसका उच्चारण करवाए। उसके बाद लिपिसंख्यान के अवसर पर आशीर्वाद प्रदान करे। उस समय निम्न मंत्र बोलें'शब्दपारगामी भव, अर्थपारगामी भव, शब्दार्थ सम्बन्ध पारगामी भव।' फिर बालक को लिपि - पुस्तक दी जाए। 17 गृह वैदिक - वैदिक परम्परा में इस संस्कार के लिए सूर्य के उत्तरायण मासों में से कोई भी शुभ दिन निश्चित कर लिया जाता है । उस दिन सर्वप्रथम बालक को स्नान करवाते हैं और सुगन्धित पदार्थों तथा सुन्दर वेश -: - भूषा से उसे अलंकृत किया जाता है। उसके बाद विनायक, सरस्वती, बृहस्पति और देवता की पूजा की जाती है । नारायण और लक्ष्मी की आराधना करते हैं तथा वेद और वैदिक सूत्रकारों के प्रति आदर प्रकट करते हैं। तदनन्तर होम किया जाता है। फिर अध्यापक को पूर्व दिशा में और विद्यार्थी बालक को पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बिठाते हैं। इसके पश्चात गुरु बालक को पढ़ाना प्रारम्भ करते हैं। उस समय रजतफलक (पत्र) पर केशर तथा अन्य द्रव्य बिखेर दिए जाते हैं और स्वर्णलेखनी से उस पर अक्षर लिखे जाते हैं। स्वर्णलेखनी और रजतफलक वाली बात धनिक परिवारों के लिए ही संभव है अतः इस अवसर के लिए विशेष रूप से निर्मित की गई लेखनी से चावल पर निम्न अक्षर लिखे जाते हैं- श्री गणेशाय नम:, सरस्वत्यै नमः, गृहदेवताभ्यो नमः,

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