Book Title: Jain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

Previous | Next

Page 337
________________ विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप ...279 “ॐ अहँ जीवत्वं कर्मणा बद्धः, ज्ञानावरणेन बद्धः, दर्शनावरणेन बद्धः, वेदनीयेन बद्ध, मोहनीयेन बद्धः, आयुषा बद्धो, नाम्नाबद्धो, गोत्रेणबद्धः, अन्तरायेणबद्धः प्रकृत्या बद्धः स्थित्या बद्धः, रसेन बद्धः, प्रदेशेन बद्धः। तदस्तु ते मोक्षो गुणस्थानारोहक्रमेण। अहँ ।” करमोचन के अवसर पर कन्या का पिता दामाद को यथाशक्ति दान करे। आशीर्वाद विधि- उसके बाद वर-कन्या पुन: वेदीगृह में आएं। गृहस्थ गुरु आशीर्वाद प्रदान करे। • फिर श्रृंगारगृह में प्रवेश करे, वहाँ पूर्व स्थापित काम की कुल व वृद्धों के अनुसार पूजा करें। • तदनंतर दोनों क्षीरान्न का भोजन करें। ___अन्य विधियाँ- तदनन्तर पूर्वोक्त उत्सव पूर्वक अपने नगर में लौटें। वहाँ अपने देशाचार और कुलाचार के अनुरूप वर-वधू की निरूंछन-मंगल विधि करें। • कंकणबंधन, कंकणमोचन, द्यूतक्रीडा और वेणी गूंथना आदि देशाचार के अनुसार करें। उसके बाद कन्यापक्ष विवाह संस्कार के सात दिन बाद मातृविसर्जन की क्रिया करे। • वर पक्ष वाले कुलकर की विसर्जन विधि करें। उसके बाद पूर्ववत मंडलीपूजा, गुरुपूजा, वासग्रहण, ज्ञानपूजा, मुनियों को दान आदि करें। • यह विवाह-विधि आचारदिनकर के अनुसार कही गई है। वर्तमान की विवाह पद्धति इससे कुछ भिन्न प्रतीत होती है। आजकल जैन पद्धति से विवाह करने की परिपाटी समाप्त-सी हो चुकी है। • वर्तमान प्रचलित तोरण स्पर्श करना, कन्या के गृहद्वार पर तोरण बांधना, दुल्हन की गोद भरना, दुल्हे का कुंकुम आदि से तिलक करना, दुल्हे के द्वारा मिट्टी के घड़े में मुद्रादि डालना, वधू की माँ के द्वारा वर के पाँव दूध से धोना, धूसर, मंथान, मूसल, हल और चरखे की त्राक से वर की पौंखन-क्रिया करना अर्थात धूसर आदि पंच वस्तुओं को लाल कपड़े में बांधकर तीन बार वर के मस्तक पर फिराना इत्यादि क्रियाओं का आचारदिनकर में उल्लेख नहीं हैं, किन्तु वर्तमान में ये सभी विधियाँ की जाती हैं। इससे ध्वनित होता है कि पूर्व निर्दिष्ट नेकाचार पन्द्रहवीं शती के बाद अस्तित्व में आए हैं। ये विधान कब-कैसे, विवाह-संस्कार के अंग बन गए? इस सम्बन्ध में प्रामाणिक जानकारी के बिना कुछ कह पाना मुश्किल है। इसके सिवाय भिन्न-भिन्न देश एवं भिन्न-भिन्न कुल परम्परा के कारण अन्य भी

Loading...

Page Navigation
1 ... 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396