Book Title: Jain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 319
________________ विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप ...261 दु:ख का स्थान नहीं होता। घर का वातावरण मधुमय हो जाता है। इस प्रकार एक विलक्षण वातावरण की सृष्टि वैवाहिक संस्कार पर ही आधारित है। सामाजिक दृष्टि से- जिस प्रकार अवयव से अवयवी का निर्माण होता है, अनेक फूलों से माला बनती है, उसी प्रकार अनेक परिवारों से समाज का निर्माण होता है, परन्तु यह ध्यातव्य है कि समाज वैसा ही होगा, जैसा कि परिवार रहेगा। परिवार का प्रत्येक पहलू समाज को अपने स्वरूप से मण्डित करता है। हम देखते हैं कि पाणिग्रहण संस्कार द्वारा संतान की उत्पत्ति होती है और वही आगे जाकर समाज निर्माण का एक मुख्य अंग होता है। इस प्रकार व्यक्ति और समाज में अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। यह विवाह संस्कार द्वारा ही संभव हो पाता है। समाज निर्माण में व्यक्ति के अलावा जिन तत्त्वों की आवश्यकता होती है, वे या तो गौण कारण हैं या फिर सहकारी कारण है, किन्तु विवाह संस्कार एक प्रधान कारण है, जिसकी छवि उपर्युक्त व्याख्या के रूप में परिलक्षित होती है।16 नि:सन्देह विवाह द्वारा परिवार का एवं परिवार से समाज का निर्माण होता है। प्राकृतिक दृष्टि से- उत्पत्ति, स्थिति एवं प्रलय-ये सृष्टि के शाश्वत सत्य हैं। इनको कथमपि नकारा नहीं जा सकता। इन तीनों का उदाहरण हमें पारिवारिक वातावरण में मिलता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार माता और पिता ब्रह्मा के रूप में बच्चे को जन्म देते हैं, विष्णु के स्वरूप में उनका पालन करते हैं तथा इन सभी का काल के द्वारा परिवार में ही अन्त हो जाता है। इस तरह किसी एक छोटे परिवार में भी संसार के सत्य स्वरूप को देखा जा सकता है। यह सब तभी संभव है, जबकि विवाह संस्कार का प्रचलन हो और उससे सर्जना की धारा चलती रहे। . सांस्कृतिक दृष्टि से- मनुष्य के जीवन का रास्ता अत्यन्त ही घुमावदार है। उसके जीवन में अनेक प्रकार के मोड़ आते रहते हैं। इस मानवीय यात्रा में सबसे जबर्दस्त मोड़ तब आता है, जब उक्त संस्कार द्वारा मानव संस्कृत होता है। इससे व्यक्ति की दिनचर्या बिल्कुल बदल जाती है। उसके आचरण, व्यवहार, नियति आदि सभी पक्षों अपूर्व परिवर्तन आ जाता हैं। वह कालपरिवर्तन के रंग में रंग जाता है। सारा अनुभव नया ही नया लगता है। इस प्रकार विवाह संस्कार द्वारा जो भी परिवर्तन होते हैं, उन्हें सांस्कृतिक-महत्त्व की कोटि

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