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... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
समता, एकता, समन्वयशीलता आदि गुणों को स्थापित करने में सक्षम होता है। इस संस्कार के पीछे न केवल अक्षरज्ञान या पुस्तकीय ज्ञान करवाने का उद्देश्य रहा हुआ है, अपितु जीवन निर्माण से लेकर राष्ट्र निर्माण की भावनाएँ भी निहित हैं। शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य यही कहलाता है।
आधुनिक शिक्षा पद्धति विचारणीय है। आज की शिक्षा में 'विद्या ददाति विनयम्” वाली शिक्षाएँ लुप्त होती जा रही हैं। अब अध्यापक वर्ग भी व्यावसायिक दृष्टि से पढ़ाते हैं । गुरुकुलों की व्यवस्था समाप्त - सी हो रही हैं। शिक्षा एक व्यवसाय या उद्योग बन गया है। यहाँ विद्याध्ययन संस्कार के सम्बन्ध में जो विधि-विधान कहे गए हैं, वे गुरुकुल की अपेक्षा से निर्दिष्ट हैं और वही प्रणाली इस संस्कार को सार्थकता प्रदान कर सकती है।
अतः कहा जा सकता है कि भारतीय संस्कृति में विद्यारम्भ संस्कार सभी संस्कारों में प्रमुख है तथा मनुष्य में मनुष्यत्व का विकास करना यही इस संस्कार का चरम लक्ष्य है।
सन्दर्भ - सूची
1. (क) भगवती, अंगसुत्ताणि, 11/11/156 (ख) ज्ञाताधर्मकथा, अंगसुत्ताणि, 1/84
(ग) औपपातिक, मधुकरमुनि, पृ. 10
(घ) राजप्रश्नीय, मधुकरमुनि, पृ. 280
2. हिन्दूसंस्कार, पृ. 137
3. वही, पृ. 138-39
4. वही, पृ. 137
5. षोडश संस्कार विवेचन, श्रीरामशर्मा आचार्य, पृ. 8-1
6. वही, पृ. 8-2
7. आचारदिनकर, पृ. 30
8. हिन्दूसंस्कार, पृ. 141
9. आचारदिनकर, पृ. 30
10. जैनसंस्कारविधि, पृ. 12
11. धर्मशास्त्र का इतिहास, भा. -1, पृ. 206 12. जैनसंस्कारविधि, पृ. 12