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122... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
नामकरण संस्कार का व्यापक पारिभाषिक निरूपण
नाम एक संज्ञावाची शब्द है। नाम शब्द का कोई अर्थ नहीं होता। हाँ! किसी का सार्थक नामकरण कर दिया जाए तो उसका अर्थ निकाला जा सकता है। जैसे- जितेन्द्र, धमेन्द्र, वीरेन्द्र आदि। इन शब्दों के अवश्य कोई अर्थ होते हैं अत: नाम किस प्रकार के दिए जाने चाहिए ? नाम रखने का औचित्य क्या है ? नाम कितने प्रकार के होते हैं? इन प्रश्नों पर संक्षेप में चर्चा करेंगे।
यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि मनुष्य को जिस तरह के नाम से पुकारा जाता है, उसमें उसी प्रकार की एक छोटी-सी अनुभूति होती है। यदि किसी को चुगलीखोर, चोरमल, आलसी, निठल्ला आदि नामों से पुकारा जाएगा तो उसमें उसी प्रकार के तुच्छ भाव जागृत होंगे अतः सार्थक और उच्चादर्श प्रतीत वाला नाम रखना ही नामकरण संस्कार है। नामकरण प्रक्रिया में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए
1. नाम उच्चरित करने में सरल और श्रुति मधुर हो ।
2. वह नाम लिंग भेद का बोधक हो ।
3. यश, ऐश्वर्य और शक्ति का बोधक हो ।
4. नाम वर्ण की स्थिति का अभिज्ञापक भी हो ।
5. जन्मकालिक वार, नक्षत्र एवं उसके अधिदेवता का आशीर्वाद दिलाने वाला हो।
6. कुल देवता के प्रति भक्ति विज्ञापित करने वाला हो ।
7. किसी विशिष्ट संत-महापुरुष की स्मृति दिलाने वाला हो ।
8. राष्ट्रीय स्वाभिमान और अस्मिता को उद्दीप्त करने वाला हो ।
9. बालक का नाम सम संख्यात्मक एवं बालिका का नाम विषम संख्यात्मक अक्षरों वाला हो। इसी के साथ-साथ गुणवाचक आदि नाम भी रखे जाएं।
जैसे-सुन्दरलाल, सत्यप्रकाश, धर्मवीर, विजयसिंह, विद्याभूषण, मनमोहन आदि। इसी तरह बालिकाओं के नाम-प्रीति, क्षमा, प्रभा, करूणा, सुशीला, शान्ति, प्रतिभा, विद्या आदि ।
महापुरुषों एवं देवताओं के नाम पर भी नामकरण किया जाए। जैसेरामावतार, कृष्णचन्द्र, शिवकुमार, लक्ष्मण, भरत, जगदीश, सुभाष, रवीन्द्र, बुद्ध, महावीर, गणेश आदि तथा बालिकाओं के नाम- कौशल्या, सीता, लक्ष्मी, सरस्वती, पद्मावती, कमला आदि ।