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192...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन किस स्थिति में नवीन यज्ञोपवीत धारण करें?
उपवीत संस्कारित ब्रह्मसूत्र है, जो संस्कार के दिन से मृत्यु पर्यन्त शरीर से अलग नहीं किया जाता है किन्तु कुछ ऐसे अवसर आते हैं, जब धारण किए हुए यज्ञोपवीत को अशुद्ध मानकर नया उपवीत धारण करने की आवश्यकता पड़ती है। शास्त्रकारों ने निम्न स्थितियों में धारण किए हुए उपवीत को अपवित्र मानकर नवीन उपवीत के धारण करने का निर्देश दिया है
1. दिगम्बर मान्यतानुसार प्रति वर्ष श्रावण पूर्णिमा के दिन नवीन उपवीत धारण करना चाहिए और पुराना जलाशय में छोड़ देना चाहिए।
2. यदि स्वयं की असावधानी से यज्ञोपवीत बाएं कन्धे से खिसककर बाएं हाथ के नीचे आ जाए अथवा उससे निकलकर कमर के नीचे आ जाए या वस्त्रादि उतारते समय उससे लिपटकर शरीर से अलग हो जाए तो नवीन प्रतिष्ठित यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए।
3. मल-मूत्र का त्याग करते समय कान में लपेटना भूल जाएं अथवा कान में लिपटा सूत्र कान से सरककर अलग हो जाए तो नवीन धारण करना चाहिए।
__ग्रन्थकारों के अनुसार यज्ञोपवीत जीवन पर्यन्त धारण करना चाहिए किन्तु निम्न स्थितियों के होने पर पुराना यज्ञोपवीत छोड़ देना चाहिए और पुन: नया धारण करना चाहिए।
1. घर पर सूतक हुआ हो, शवयात्रा में सम्मिलित हुए हों, कुटुम्ब में निकट सम्बन्धी की मृत्यु हुई हो या बालक-बालिका का जन्म हुआ हो तो यज्ञोपवीत अवश्य बदल लेना चाहिए।
2. यज्ञोपवीत टूट गया हो तो पुनः नया धारण करना चाहिए।
3. अपवित्र मल-मूत्र-रक्त आदि का उससे स्पर्श हुआ हो, अस्पर्श्य जाति के चांडालादि द्वारा छू लिया गया हो तो यज्ञोपवीत बदल लेना चाहिए। यदि अज्ञानतावश शूद्र जाति के साथ भोजन कर लिया हो अथवा मद्य सेवी और मांसभक्षी के साथ भूल से भोजन कर लिया हो तो प्रायश्चित्त कर उस यज्ञोपवीत का पुन: संस्कार करना चाहिए। नया पहनने की जरूरत नहीं है।
4. गाय, कुत्ता, बिल्ली, सर्प आदि पंचेन्द्रिय जीवों की जानबूझकर या अज्ञानता पूर्वक हिंसा हो गई हो तो प्रायश्चित्त ग्रहण कर एवं पुनः संस्कारित करवाकर धारण करना चाहिए।44