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228...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन है अपितु संयम, सदाचार, सरलता, सभ्यता, शालीनता आदि गुणों को भी अपनाता है। आचार्य की संग-सन्निधि एवं समान वयस्क साथियों के रहने के कारण विनय, विवेक, भाईचारा, कुटुम्ब भावना आदि गुण स्वत: प्रकट होते हैं। एक दीर्घावधि तक कठोर अनुशासन एवं पारिवारिक-ममत्व भावों से दूर रहना जीवन की विकास यात्रा का बहुत बड़ा अध्याय कहा जा सकता है। संक्षेपत: यह संस्कार जीवन की विकास यात्रा के लिए श्रेयस्कारी, मंगलकारी एवं अभ्युदयकारी है। सन्दर्भ-सूची 1. षोडशसंस्कार-एक वैज्ञानिक विवेचन, डॉ. बोधकुमार झा., पृ. 29 2. धर्मशास्त्र का इतिहास, भा.-1, पृ. 209 3. अथर्ववेद, 11/5/3, हिन्दूसंस्कार, पृ. 148 4. 'उप समीपे आचार्यादीनां बटोर्नयनं प्रापणम्पनयनम् भारूचि'। वीर मित्रोदय
संस्कार, भा.-1, पृ. 334 5. वही, पृ. 334 6. संस्कृत हिन्दी कोश, पृ. 206 7. 'उपनीयते वर्णक्रमारोह युक्त्या प्राणी पुष्टिं नीयतेनेन इत्युपनयनम्'।
आचारदिनकर, पृ. 20 8. संस्कृतहिन्दीकोश, पृ. 211 9. अथर्ववेद, 11/5/3 10. हिन्दूसंस्कार पृ. 150 11. याज्ञवल्क्यस्मृति, 1/15 12. गौतमधर्मसूत्र, 8/14/24 13. मनुस्मृति, 2/26 14. वीरमित्रोदयसंस्कार, भा.-1, पृ. 137 15. आचारदिनकर, पृ. 19 16. उपदेशमाला, उद्धृत-आचारदिनकर, पृ. 19 17. आदिपुराण, पर्व-38, पृ. 241 18. प्रश्नव्याकरण अंगसुत्ताणि-2/13 19. यज्ञोपवीतसंस्कार, पृ. 37 20. उत्तरपुराण, अनु.-पन्नालाल जैन, पर्व-63, पृ. 177