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160... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
भी कहते हैं। यहाँ चूड़ाकर्म या चूड़ाकरण वह कृत्य है, जिसमें जन्म के उपरान्त पहली बार सिर पर एक शिखा ( केशगुच्छ) रखी जाती है तथा शेष बालों को उतारा जाता है। चूड़ा शब्द बालों के लिए प्रयुक्त हुआ है। चूड़ा से ही चौल शब्द बना है। इस प्रकार गर्भकाल में उत्पन्न हुए बालों का एक गुच्छा रखकर शेष का मुण्डन कर देना चौल संस्कार कहलाता है।
चूड़ाकरण संस्कार की वैधानिक आवश्यकता
चूड़ाकरण संस्कार के प्रयोजन, आवश्यकता एवं महत्त्व आदि के विषय में यदि विविध अपेक्षाओं से चिंतन किया जाए तो अनेकशः पहलू उद्घाटित होते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस संस्कार का प्रयोजन दीर्घ आयु, सौन्दर्य वृद्धि एवं कल्याण की प्राप्ति करना है। यह संस्कार सम्पन्न न किया जाए तो आयु का ह्रास होता है अत: यह संस्कार अवश्यकरणीय है । सुश्रुत के अनुसार केश, नख तथा रोम का अपमार्जन (छेदन) करने से हर्ष, सौभाग्य एवं उत्साह की वृद्धि होती है और पाप का उपशमन होता है । चरक का मत है - केश, श्मश्रु एवं नखों के काटने या उन्हें संवारने से पौष्टिकता, शुचिता, आयुष्य वृद्धि और सौन्दर्य की प्राप्ति होती है। सामान्यतया इस संस्कार का प्रयोजन मस्तिष्कीय विकास और बालक की सुरक्षा करना है।
वैज्ञानिक दृष्टि से यह संस्कार बालक की विचारधारा में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करता है। मुण्डन कर्म द्वारा विचार संस्थान को विशेष रूप से प्रभावित किया जाता है। चूंकि केश मस्तिष्क पर पड़ने वाले बाह्य प्रभावों को रोकते हैं इसलिए उन्हें हटाकर सिर के रोम कूपों द्वारा विशिष्ट बातें मस्तिष्क के अन्तराल तक पहुँचाई जा सके। मुण्डन के माध्यम से बालक को विशेष प्रेरणाएँ दी जाती हैं। मुण्डन क्रिया कुछ विशेष अवसरों पर ही की जाती है।
चूड़ाकर्म का एक उद्देश्य अनादिकाल से चले आ रहे जन्म- जन्मान्तरों के पाशविक एवं संकीर्ण विचारों और कुसंस्कारों को दूर कर मानवीय आदर्शों को स्थापित करना है। मुण्डन कर्म के द्वारा भावात्मक रूप से कुविचारों का भी मुण्डन किया जाता है। उस समय बालक के लिए सम्यक् भावनाएँ संप्रेषित की जाती हैं क्योंकि वह बालक तब तक स्वयं उतना सक्षम नहीं होता है।
यहाँ प्रसंगानुसार यह भी उल्लेखनीय है कि मरणोत्तर संस्कार में उत्तराधिकारी तथा कुटुम्बीजन इसलिए मुण्डन करते हैं कि प्रिय व्यक्ति के देहान्त