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188...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन यदि कोई ब्राह्मण बिना यज्ञोपवीत धारण किए भोजन कर ले तो उसे प्रायश्चित्त आता है। ____यज्ञोपवीत(जनेऊ) निर्माण विधि- बौधायनसूत्र आदि के अनुसार जनेऊ बनाने एवं उसे अभिमन्त्रित करने की निम्न विधि है 39_
__सर्वप्रथम किसी ब्राह्मण या कुंवारी कन्या द्वारा काता हुआ सूत लाएं। फिर 'भः' के उच्चारण पूर्वक किसी व्यक्ति के द्वारा उसे 96 अंगुल नाप लिया जाए। इसी प्रकार पुनः दो बार 'भुव:' और स्व: के उच्चारण पूर्वक 96-96 अंगुल का सूत नापा जाए। उसके बाद नापे हुए सूत को पलाश के पत्ते पर रखें और तीन मन्त्रों 'आपो हिष्ठा'(ऋग्वेद 10/9/1-3), 'हिरण्यवर्णाः' एवं 'पवमानः सुवर्जन:' से प्रारम्भ होने वाले अनुवाक तथा गायत्री मन्त्र के साथ उस पर जल छिड़कें अर्थात इन तीन मन्त्रों से उन तीन तारों को जल में अच्छी तरह भिगाएं। फिर तीन तारमय सूत को बाएं हाथ में लेकर तीन बार जोर से आघात करें। तदुपरान्त, तीन व्याहतियों से उसे एक बट देकर एक रूप बना ले। अब इन्हीं मन्त्रों से उसे त्रिगुणित करें और पुन: बटकर एक रूप कर लें। पुन: इसे त्रिगुणित करके प्रणव से उसमें ब्रह्मग्रन्थि (गांठ) लगाएं। इसके नौ तन्तुओं मे ओंकार, अग्नि, अनन्त, चन्द्र, पितृगण, प्रजापति, वायु, सूर्य और सर्वदेव आदि नौ देवताओं का क्रमश: आवाहन और स्थापन करें। फिर 'देवस्यत्वा' मन्त्रोच्चार के साथ उपवीत उठाएं, उसके बाद 'उद्वयं तमसस्परि' मन्त्र द्वारा उसे सूर्य के सम्मुख दिखाएं। फिर 'यज्ञोपवीतं परमं पवित्र' मन्त्र बोलते हुए उसे धारण करवाएं। मन्त्र पठन के साथ गाँठ बाँधे। यह यज्ञोपवीत बनाने एवं धारण करने की विधि है। __वर्तमान परम्परा में पुराना हो जाने पर या अशुद्ध हो जाने पर, कट या टूट जाने पर पुन: नवीन यज्ञोपवीत धारण करते हैं तब अग्रिम विधि करते हैंयज्ञोपवीत पर 'आपो हिष्ठा' मन्त्रों के साथ जल छिड़का जाता है। इसके पश्चात दस बार गायत्री मंत्र (ॐ भूर्भव: स्व:) का उच्चारण किया जाता है और उसके पश्चात 'यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं' मन्त्रोच्चार के साथ यज्ञोपवीत धारण किया जाता है।
उपवीत किसका प्रतीक ? वैदिक-परम्परा में यज्ञोपवीत के नौ धागों में नौ देवताओं का निवास माना गया है- 1. ओघमकार 2. अग्नि 3. अनन्त