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164...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन चूड़ाकरण संस्कार के पारम्परिक अधिकारी __श्वेताम्बर परम्परा में इस संस्कार का अधिकारी जैन ब्राह्मण या क्षुल्लक को माना गया है। दिगम्बर परम्परा में इस संस्कार के अधिकारी का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, किन्तु प्राय: सभी संस्कार द्विज या पिता द्वारा सम्पन्न करवाए जाते हैं अत: इस संस्कार का अधिकारी द्विज होना चाहिए क्योंकि मन्त्रोच्चार का अधिकार उसे ही प्राप्त होता है। वैदिक परम्परा में इस संस्कार का मुख्य कर्ता पिता को माना गया है, किन्तु केश काटने का कार्य नापित करता है। यह बात तीनों परम्पराओं में समान रूप से मान्य है। चूड़ाकरण संस्कार हेतु शुभ दिन का विचार ___ आचारदिनकर के अनुसार हस्त, चित्रा, स्वाति, मृगशिरा, ज्येष्ठा, रेवती, पुनर्वसु, श्रवण और धनिष्ठा-इन नक्षत्रों में, एकम, दूज, तीज, पंचमी, सप्तमी, दशमी, ग्यारस या तेरस-इन तिथियो में शुक्र, सोम या बुध-इन वारों में, शिशु का चन्द्रबल और ताराबल देखकर चौलकर्म करना चाहिए। पर्व के दिनों में, यात्रा में, स्नान के बाद और भोजन के बाद, विभूषा के बाद, तीनों संध्याओं में, रात्रि में, संग्राम में, क्षय तिथि में और अन्य मंगलकारी कृत्यों में यह क्षौरकर्म संस्कार नहीं करना चाहिए। इसमें यह भी बताया गया है कि क्षौरकर्म के दिन बालक की कुंडली के केन्द्र में कौनसे ग्रह होने चाहिए और कौन से ग्रह नहीं होने चाहिए तथा उन ग्रहों के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं? इस प्रकार श्वेताम्बर परम्परा में चूड़ाकरण संस्कार के लिए शुभ मुहूर्त आदि का विस्तृत विवेचन प्राप्त होता हैं।10
__ दिगम्बर परम्परा में भी पूर्वोक्त नक्षत्र, तिथियाँ एवं वार इस संस्कार के लिए योग्य बताए गए हैं।11
वैदिक परम्परा में भी इस संस्कार के लिए शुभ मुहूर्त निकालने जाने का उल्लेख है।12 इसी के साथ ही यह संस्कार सूर्य के उत्तरायण होने पर किया जाना चाहिए, यह दिन के समय ही किया जाना चाहिए इत्यादि निर्देश भी प्राप्त होते हैं। किन्हीं मत में चैत्र और पौष, किन्हीं मत में ज्येष्ठ और मार्गशीर्ष, इस संस्कार के लिए त्याज्य माने गए हैं।13।
इस प्रकार उक्त तीनों परम्पराएँ इस संस्कार के लिए शुभ दिन आदि का होना आवश्यक मानती हैं।