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170... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
तीनों के प्रति कृतज्ञ भाव बनाए रखना और उन्हें प्रसन्न एवं सन्तुष्ट रखनातीन शिखाओं का सन्देश है।
शैशव, यौवन और वृद्धावस्था - इन तीन अवस्थाओं का समुचित सदुपयोग करना, भूत, भविष्य, वर्तमान तीन कालों के सम्बन्ध में समुचित सतर्कता रखना तीन शिखाओं का सन्देश है। 27
केशगाढ़ना - श्रीरामशर्मा आचार्य के मन्तव्यानुसार बालों को गोबर में रखकर जमीन में इसलिए गाढ़ा जाता है कि उनकी भी गोबर की तरह खाद बन जाए। 28 पशुओं के शरीर का हर अवयव मल-मूत्र - दूध आदि दूसरों के काम आता हैं। वृक्ष-वनस्पतियाँ भी अपने पत्र, पुष्प, फल एवं लकड़ी, सब कुछ परमार्थ के लिए समर्पित करती हैं, इसी तरह मनुष्य भी अपनी उपलब्धियों का अधिकाधिक उपयोग परमार्थ के लिए करे। बाल गाढ़ने के पीछे यही उद्देश्यपूर्ण शिक्षा समाहित है। इस क्रिया का एक प्रयोजन दुष्ट शक्तियों का निवारण करना है क्योंकि केश शरीर का अंगीय विभाग है और परिणाम स्वरूप शत्रुओं द्वारा उस पर जादू तथा अभिचार का प्रयोग सम्भव हो सकता है। इस प्रकार तन्त्रीयप्रभाव को दूर करने के लिए यह प्रक्रिया की जाती है।
स्वस्तिक आलेखन- दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा में मुण्डित मस्तक पर स्वस्तिक या 'ॐ' लिखते हैं। 'ॐ' ईश्वर का ही नाम है। यह अनाहत नाद शब्द है। इस शब्द शक्ति से विश्व की सारी गतिविधियाँ संचालित होती हैं। वस्तुतः इस सर्व शक्ति के प्रतीक नाम को मस्तक पर लिखकर यह प्रयत्न किया जाता है कि बालक ईश्वर भक्त बने । स्वस्तिक ( 47 ) 'ॐ' की ही प्राचीनतम लिपि है। जब अक्षर-विज्ञान परिष्कृत नहीं हुआ था, तब 'ऊँ' को स्वस्तिक के रूप में लिखा जाता था अतः 'स्वस्तिक' और 'ॐ' - दोनों का तात्पर्य एक सा ही है। यह स्वस्तिक आलेखन चन्दन, केशर एवं कपूर के सम्मिश्रण से किया जाता है जिसका तात्पर्य विचारधारा को शीतल, सुसंगठित एवं परिपुष्ट बनाना है। चन्दन को शीतलता, कपूर को सुसंगठित एवं केशर को पुष्टि का प्रतीक माना गया है। इस प्रकार हम देखते हैं कि चूड़ाकरण संस्कार से सम्बन्धित प्रायः विधिविधान सप्रयोजन एवं औद्देशिक है।