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चूड़ाकरण संस्कार विधि का उपयोगी स्वरूप ...173 द्वारा शिशु का पहली बार केशकर्तन होता है। इसमें केशों का कुछ अंश एक सुनिश्चित स्थान पर छोड़ दिया जाता है।
इस संस्कार के समय माता-पिता की उपस्थिति अनिवार्य मानी गई है। इसके पीछे केवल उनका निश्छल वात्सल्य, स्नेह ही कारण नहीं होता, वरन् बच्चे की चंचलता सुलभ क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं द्वारा कर्त्तली(मुंडन करने का उपकरण) से क्षत-विक्षत न हो जाए, उन सम्भावनाओं को रोकने के लिए उन लोगों की उपस्थिति आवश्यक होती है।
बच्चे की प्रत्येक हरकत वहाँ बैठे हुए व्यक्तियों की समझ में आ जाए, बाल सुलभ हर एक चेष्टाओं का अध्ययन किया जा सके, एतदर्थ वहाँ जल एवं दर्पण रखा जाता है। ज्ञातव्य है कि जल एवं दर्पण-दोनों ही छाया की प्रतिछाया को अपने में बिम्बित कर देने की शक्ति रखते हैं।
एक बात यह पढ़ने में आई है कि जब तक उपनयन संस्कार न हो, तब तक बच्चे के बाल कैंची से ही काटे जाते हैं, उस्तरे का प्रयोग नहीं होता। इसमें एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक कारण निहित है। तीन साल के बच्चे का मस्तिष्क चर्म अत्यन्त ही नाजुक होता है। छुरी द्वारा चमड़ी छिल जाने की पूरी संभावना रहती है इसलिए कैंची का प्रयोग किया जाता है, यज्ञोपवीत संस्कार को एक अवधि के रूप में रखा गया है। तब तक बालक के मस्तक का वह भाग सख्त हो जाता है, फिर जिस तरह से चाहें, उसकी केश सज्जा कर सकते हैं। प्रारम्भ में यह बात सुनकर अटपटी-सी लग सकती है, किन्तु इसमें निहित सत्यार्थ को देखें तो पाते हैं कि यह एक वैज्ञानिक क्रिया है।
इसी प्रकार शिखा रखना भी चूड़ाकरण संस्कार का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग है, किन्तु सिर के किस भाग में और कितने केश छोड़ दिए जाने चाहिए? इस विषय में मतभेद हैं। बोधायनसूत्र के अनुसार सिर पर तीन या पाँच केश गुच्छ छोड़े जा सकते हैं। कुछ ऋषियों के अनुसार पिता द्वारा आहत प्रवरों की संख्या के अनुसार ही केश छोड़े जाने चाहिए। वसिष्ठ के वंशज सिर के मध्यभाग में एक शिखा रखते हैं। कश्यप के वंशज दोनों और दो शिखाएँ रखते हैं। कुछ लोग केशों की एक पंक्ति रखते हैं। भृगु के वंशज मुण्डित रहते हैं। अंगिरस के वंशज पाँच शिखाएँ रखते हैं। आज सम्भवत: सादगी और शालीनता की दृष्टि से एक शिखा रखने की प्रथा व्यापक हो गई है23। कुछ