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गर्भाधान संस्कार विधि का मौलिक स्वरूप ...57 निर्वाण आदि क्षेत्रों की पूजा करने में दोष नहीं है, उसी प्रकार अग्नि की पूजा करने में भी कोई दोष नहीं है। गर्भाधान संस्कार का तुलनात्मक विवेचन ___ गर्भाधान एक महत्त्वपूर्ण संस्कार है। पूर्वोक्त विवेचन के आधार पर निम्नोक्त संदर्भो में इसका तुलनात्मक विवेचन इस प्रकार है___• श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा इस संस्कार को सम्पन्न करवाने का अधिकारी गृहस्थ गुरु या क्षुल्लक को मानती है, जबकि वैदिक परम्परा ने इस संस्कार का मूल कर्ता पति को स्वीकारा है।
• श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक तीनों परम्पराओं में इस संस्कार के लिए शुभ नक्षत्र आदि का विचार किया गया है। वैदिक-ग्रन्थों में यह वर्णन संक्षेप में किया गया है।
• श्वेताम्बर मत के अनुसार गर्भधारण के बाद पाँच मास की अवधि पूर्ण होने पर, दिगम्बर मतानुसार मसिक धर्म के चतुर्थ दिन के बाद चौदहवीं रात्रि तक शुभ दिन आदि का योग होने पर तथा वैदिक-मान्यतानुसार मासिक धर्म के चौथे दिन या चौथी रात्रि से लेकर सोलहवें दिन की रात्रि तक यह संस्कार किया जाना चाहिए।
• श्वेताम्बर-ग्रन्थ में इस संस्कार हेतु आवश्यक सामग्री का स्पष्ट उल्लेख हुआ है, जबकि दिगम्बर एवं वैदिक ग्रन्थों में सामग्री को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई है।
• श्वेताम्बर परम्परा में यह विधि सम्पन्न करते समय गर्भवती की शारीरिक शुद्धि, गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कृत एवं संरक्षित करने के उद्देश्य से अरिहन्त प्रभु की उपासना, गर्भधारण की अवधि निर्विघ्न सम्पन्न हो, एतदर्थ गुरु भगवन्त को वन्दन, वस्त्रदान आदि के द्वारा गुरु की सेवा-भक्ति आदि प्रक्रियाएँ की जाती है तथा इस संस्कार को करने का प्रयोजन पारिवारिक और धार्मिक विकास माना गया है। दिगम्बर परम्परा में यह संस्कार प्रमुख रूप से अरिहन्त परमात्मा की पूजोपासना पूर्वक सम्पन्न किया जाता है। वैदिक मत में इस संस्कार को लेकर विभिन्न विधियाँ कही गईं हैं। गर्भ की उत्पत्ति निवेदना पूर्वक एवं यथासमय हो, इस उद्देश्य से पति के द्वारा कुछ विशिष्ट क्रियाएँ किए