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102...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन वैदिक परम्परा में यह संस्कार शिशु के माता-पिता द्वारा किए जाने का सूचन है।
काल विषयक- श्वेताम्बर परम्परा के मतानुसार यह संस्कार जन्म के तीसरे दिन किया जाना चाहिए किन्तु दिगम्बर एवं वैदिक मत में अपनी कुलपरम्परा के अनुरूप जन्म के दिन ही इसे सम्पन्न करने का उल्लेख है।
___ मन्त्र विषयक- श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक-तीनों परम्पराओं में स्तनपान से सम्बन्धित मन्त्रों का उल्लेख किया गया है, किन्तु मन्त्रोच्चार एवं मन्त्र-प्रक्रिया की पद्धतियाँ भिन्न-भिन्न हैं।
___ श्वेताम्बर परम्परा में तीर्थोदक को अमृत मंत्र द्वारा अभिमन्त्रित कर उससे माता के स्तनों को अभिसिञ्चित करने हेतु कहा गया है। वह अमृत मंत्र इस प्रकार है- “अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणी अमृतं श्रावय-श्रावय स्वाहा।" 10
दिगम्बर परम्परा में 'विश्वेश्वरीस्तन्यभागी भूया:' इस मन्त्रोच्चार द्वारा माता के स्तन को मन्त्रित करने का संकेत है।11
वैदिक परम्परा में स्तनों को अभिमन्त्रित करने का विवरण तो उपलब्ध होता है, किन्तु वह मन्त्र कौनसा है ? यह अस्पष्ट है12।
इस प्रकार तीनों परम्पराओं में प्रथम स्तनपान करने की प्रक्रिया को उपयोगिता के साथ स्वीकारा गया है।
विधि विषयक- श्वेताम्बर परम्परा में क्षीराशन संस्कार की अति संक्षिप्त विधि दर्शाई गई है। इसमें योग्य जल को अधिवासित करना, माता के स्तनों का सिंचन करना तथा दूध पीते हुए बालक के लिए मंत्रोच्चारपूर्वक आशीर्वाद प्रदान करना आदि कृत्य प्रमुख रूप से होते हैं। दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा में इस संस्कार की अलग से कोई विधि नहीं दी गई है, केवल मन्त्रोच्चार पूर्वक माता द्वारा बालक को स्तनपान कराने की बात कही गई है।
हम देखते हैं कि श्वेताम्बर परम्परा में क्षीराशन संस्कार का पृथक अस्तित्व माना गया है जबकि दिगम्बर एवं वैदिक मत में इस संस्कार का कोई अलग स्थान नहीं है। उपसंहार
जैन परम्परा के संस्कारों में क्षीराशन संस्कार का अद्वितीय स्थान रहा हुआ है। इस संस्कार विधि द्वारा नवजात शिशु को सर्वप्रथम माता का स्तनपान करवाया जाता है। विधि-विधान एवं मंत्रोच्चार की प्रक्रिया द्वारा माता के