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जातकर्म - संस्कार - विधि... 81
यदि हम जन्म संस्कार विधि का समीक्षात्मक विवेचन करते हैं, तो कईं सार गर्भित विषय स्पष्ट होते हैं। आचारदिनकर में जन्म संस्कार सम्बन्धी जो-जो क्रियाकलाप वर्णित हैं, वे शरीर शुद्धि के साथ-साथ मन एवं आत्मा की शुद्धि पर भी जोर देते हैं। द्रव्य शुद्धि, भाव शुद्धि का प्रबल आधार है। जन्म के अवसर पर अभिमन्त्रित जल द्वारा स्नान कराना, रक्षापोटली बंधवाना, कुल वृद्धाओं द्वारा प्रसूति कर्म को सम्पन्न करवाना आदि कृत्य विशेष महत्त्वपूर्ण हैं | इस तरह की प्रक्रिया के द्वारा नवजात शिशु में बुद्धि, मन और शरीर आदि की अपेक्षा जो परिवर्तन होते हैं, वे अनुभूति के ही विषय हैं।
दिगम्बर परम्परा में जन्म संस्कार विधि का जो स्वरूप बताया गया है, वह नवजात शिशु के लिए शारीरिक एवं धार्मिक दोनों दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। वैदिक परम्परा में इस संस्कार - कर्म का सम्बन्ध नवजात शिशु की शारीरिक सुरक्षा एवं मानसिक विकास से जुड़ा हुआ है।
संक्षेप में कहें तो, तीनों परम्पराओं में यह संस्कार अभिनव बालक के सुयोग्य विकास के लिए किया जाता है। इस संस्कार का महत्व भौतिक और आध्यात्मिक-दोनों दृष्टियों से है।
सन्दर्भ-सूची
1. आचारदिनकर, पृ. 10
2. आदिपुराण. पर्व- 38, पृ. 246
3. हिन्दूसंस्कार, पृ. 78
4. आचारदिनकर, पृ. 5
5. आदिपुराण, पर्व. - 38, पृ. 245
6. वही, पृ. 11
7. जैनसंस्कारविधि, पृ. 10
8. धर्मशास्त्र का इतिहास, भा. - 1. पृ. 195
9. आचारदिनकर, पृ. 10
10. हिन्दूसंस्कार, पृ. 93
11. आचारदिनकर, पृ. 10
12. आदिपुराण, पर्व - 38, पृ. 146
13. हिन्दूसंस्कार, पृ. 93