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गर्भाधान संस्कार विधि का मौलिक स्वरूप ... 51
उसके कुल का कोई व्यक्ति या अन्य कुल का मित्र यह संस्कार सम्पन्न करवा सकता है।
सुस्पष्ट है कि श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में संस्कार का कर्ता गृहस्थ गुरु या क्षुल्लक को माना गया है और संस्कार निष्पन्न करते समय पति की उपस्थिति आवश्यक मानी गई है जबकि वैदिक परम्परा में संस्कार का मूल कर्ता पति को ही स्वीकारा गया है।
गर्भाधान संस्कार करवाने योग्य शुभ मुहूर्त्त विचार
श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार यह संस्कार यदा-कदा न करके जिस दिन शुभ तिथि हो, रवि, सोम, बुध, गुरु आदि शुभ वार हो; श्रवण, हस्त, पुनर्वसु, मूल, पुष्य, मृगशिरा आदि शुभ नक्षत्र हो तथा पति का चन्द्र बलवान हो, उस दिन यह संस्कार सम्पन्न करना चाहिए | 10 दिगम्बर परम्परा के अर्वाचीन ग्रन्थों में गर्भाधान संस्कार के लिए निम्न नक्षत्र आदि शुभ माने गए हैं।
नक्षत्र - अश्विनी, रोहिणी, पुनर्वसु, पुष्य, श्रवण, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तरा भाद्रपद, मृगशिरा, हस्त, अनुराधा, स्वाति, शतभिषा, धनिष्ठा, चित्रा। तिथियाँ- द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, वार-सोम, बुध, गुरु, शुक्र। इन नक्षत्र आदि के दिनों में संस्कार करने को शुभ माना है। वैदिक परम्परा में गर्भाधान संस्कार हेतु अमावस्या, पूर्णिमा, अष्टमी, चतुर्दशी - ये तिथियाँ, मूल एवं मघा नक्षत्र तथा कुछ मास अशुभ माने गए हैं, 12 किन्तु किन शुभ दिन आदि में यह संस्कार सम्पन्न किया जाना चाहिए, तत्सम्बन्धी कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है ।
यहाँ फलित होता है कि तीनों परम्पराएँ अपने-अपने मान्य ग्रन्थों के अनुसार इस संस्कार को सम्पन्न करने के लिए शुभ दिन आदि का होना अनिवार्य रूप से स्वीकार करती हैं तथा शुभ मुहूर्त्त में किया गया संस्कार सन्तान की प्राप्ति एवं उसे सुसंस्कृत बनाने के लिए विशिष्ट भूमिका अर्जित करता है । गर्भाधान हेतु काल विचार
इस संस्कार के लिए शुभ दिन आदि का होना जितना जरूरी है, उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि यह संस्कार कब, किस मास या वर्ष में किया जाना चाहिए?