________________ XXXXMornxxxaxxxx KamatiPuneJaan ठीक मानने पर श्रात्मा फिर श्रात्मदर्शी होसकता है। आत्मदर्शी श्रात्मा ही फिर लोकालोक का पूर्णतया ज्ञाता होकर निर्वाण पद प्राप्त कर सकता है। इसलिये प्रत्येक आत्मा को योग्य है कि वह सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चारित्र / द्वारा स्वकृत कर्मों को क्षय कर मोक्ष पद की प्राप्ति करे। वास्तव में जो श्रात्मा कर्मों से सर्वथा विमुक्त है उसी का नाम मोक्षात्मा है तथा उसी का नाम निर्वाण पद है / फिर उसी श्रात्मा को सिद्ध, युद्ध, अज, अजर, अमर, पारगत, परम्परागत, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, सत्चिदानन्द, ईश्वर, परमात्मा, परमेश्वर इत्यादि नामों से कहा जाता है। xxxxxxxxx