Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ APERIES ( 4) कर पर्याच्यापिनी मानीमा मातीमो फिर मामा कमी से पिमुरदासकता। जिस प्रकार मामा से शाम पापन ८प्रपामा दोसकते हसी मबार फिर कर्म मी भारमा स। प्रमही सांगे। अपबमों का प्रपदमा मसिममा वो फिर निर्याप की प्राण भरमा तपा निर्वाध पर की प्राप्ति , लिये संपादिपिामों में पुस्पा करमा माका-ममी पत् सिय होगा। प्रतएव मारमा को को मापरम से पुल मानना ही पुझियुक सिर रोता मनुको से बहारम सम्बन्धपाता।विस प्रकार बम मसयुका सुपर्व मसयुत ने पर फिर रेमिमिता मिलने पर गरोसबोटी रसी प्रकार मारम प्रम्प भी मारधारा नानोमागमन का निरोप पर फिर निरामारा पुरावन मो का पप कर निर्वाष पर की प्राधिकरता है। अब इस स्थान पर पा पसरपस्थित हातावर मिमिचौके मिलने पर मारम सात कमी से सपा विमुकदा सकता तो फिर प्रमम्म भामा मोष ममन पोप पापी मानेमा सकता इस ऐका के समाधान में कार माता किममप्प मारमा स्वमाषता इस प्रकार धर्म बाले पाते / किन अम्तम्भाप से कमै प्रम्य वीमहोती तपा नदी बनको मोष प्राति के लिए पूर्वतया सामग्री की प्राप्ति होती है। किमामा मम्प भारमारे सामग्री के मिसम पर साकीप गेस्प की परिकर सकते। सिम प्रकार भंग पा कर मूम स्वामाविस्तार क उसी प्रकार मम्प और ममम्प भारमा भी स्वामाविस्ता से माने जातेन बिमाषिक पर्याप से। साभारमतव एERESISESERTERESERनाममासम्म H-JEENDEEOमोनाटा

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 206