Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
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Page 11
________________ EXPERTAHAA मारलEEETBREBEE Aपासमता म्पपदार रएि से प्रारमत की सुगीर पुरस पारा भी सिरि की माती है। जैसे कि-मो पदार्प गाव गुपपासे ये सुधबा पर मनुमय माही परसात। जिस प्रकार सीतारमणाविरको प्रारमतस्व अनुमय करता फिर उसकी मिपत्ति के सिपेभसाम परिश्रम करने सग जाता है उसी प्रकार प्रमीप तप उक प्रकार को कान तो अनुभवी करताचौर मादी उसकी मिलि के लिप कुछ परिममनीरता। सो इसम सिमामा कि- / सुख पा पुमको ममुमा फरल पाता मारमतती है। पुलों को दूर करने के लिये व्यवहार पर मैं प्रमा प्रकार के रपार्यो भम्बेपत करमा फिर उस पापा के भनु सार परिश्रम करते गाना ये सब जीवतत्पर मस्तित्व होत सापारप ममा / स्मृति प्रापिहोने से प्रारमतप अपनी शाश्पता सिर कर सारे और पांच भौतिक पारा निराकरण भी साय फिपे जारहा है। कारस कि-पाच मातिकबार स्वीकार दिये जाने पर फिर स्मृति मादिभारम विकास गुषों का भभाष माना जाएगा / मतपप सिर मा हि-मारमतत्प की सिसि के सिप जान पनि सपा पुम पे कारण मानने पुतियुसिय नेपाली कारपोसे वास्तव मे भारम तत्वफ्ना अस्तित्व माप रजने में समर्पहै। परिभारमतात विषयमविपार स्वीकार किपा माप तब अफस बार का सापनी मसंग उपस्पिताबापमा। बारपरि की स्पिति मानने पर ही रसाप किये एप कर्मफस का समाप मामा मा सकताti HEAwaawa------ SEBERpsexमानामाXXHI) 44

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