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जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा
कथा तीन प्रकार की होती है ११ - ( १ ) अर्थ-कथा (२) धर्म - कथा ( ३ ) काम-कथा १२ | धर्म-कथा के चार भेद हैं 93 | उनमें दूसरा भेद है— विक्षेपणी । इसका तात्पर्य है -- धर्म-कथा करने वाला मुनि ( १ ) अपने सिद्धान्त की स्थापना कर पर सिद्धान्त का निराकरण करे १४ | अथवा ( २ ) पर सिद्धान्त का निराकरण कर अपने सिद्धान्त की स्थापना करे । ( ३ ) पर सिद्धान्त के सम्यग्वाद को बताकर उसके मिथ्यावाद को बताए अथवा ( ४ ) पर सिद्धान्त के मिथ्यावाद को बताकर उसके सम्यग्वाद को बताए ।
तीन प्रकार की वक्तव्यता '
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( १ ) स्व सिद्धान्त वक्तव्यता ।
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(२) पर सिद्धान्त वक्तव्यता ।
(३) उन दोनो की वक्तव्यता ।
स्व सिद्धान्त की स्थापना और पर सिद्धान्त का निराकरण वाद विद्या में कुशल व्यक्ति ही कर सकता है।
भगवान् महावीर के पास समृद्धवादी सम्पदा थी । चार सौ मुनि वादी थे १६ |
नौ निपुण पुरुषो में वादी को निपुण ( सूक्ष्म ज्ञानी ) माना गया है १७ | भगवान् महावीर ने हरण ( दृष्टान्त) और हेतु के प्रयोग में कुशल साधु को ही धर्म-कथा का अधिकारी बताया है ' " |
इसके अतिरिक्त चार प्रकार के आहरण और उसके चार दोष, चार प्रकार के हेतु, छह प्रकार के विवाद, दस प्रकार के दोष, दस प्रकार के विशेष, आदेश (उपचार) आदि आदि कथाड़ों का प्रचुर मात्रा मे निरूपण मिलता है ।
तर्क - पद्धति के विकीर्ण बीज जो मिलते हैं, उनका व्यवस्थित रूप क्या था, यह समझना सुलभ नहीं किन्तु इस पर से इतना निश्चित कहा जा सकता है कि जैन परम्परा के श्रागम युग में भी परीक्षा का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । कई तीर्थिक नीव - हिंसात्मक प्रवृत्तियों से 'सिद्धि' की प्राप्ति बताते हैं, उनके इस